Saturday, May 9, 2015

नोटंकी कलाकार और उनका भविष्य

 नोटंकी मलिका  गुलाब बाई का नाम तो सबने सुना होगा. जीवन के अंत में उनेह पद्मश्री अवार्ड  मिला . बचपन से बुढ़ापे तक ता  जिंदगीभर वे घुंघरु के साथ दोस्ती में बंधी रही .. बेडिया समुदाय प्राय नाच और गाने के व्यवसाय में अपनी रोजी रोटी की जरुरत भर पूरी करता है .परिवार की बड़ी लड़की को नाच गाना सिखा कर उसे इस धंधे में प्रेरित किया जाता है  की वो नोटंकी में नाचते गाते  हुए हस हंस कर बचपन से जवानी ओए जवानी से बुढ़ापे तक अपने परिवार का पेट भरे और उनेह सुरक्षा दिलाए .
दलित महिला जो देवदासी बन कर अपने परिवार की मर्यादा और जीवन आधार बन जाती है उसे जीवन में कभी अपने लिए मान सम्मान और सुरक्षा और प्रेम नहीं मिलता ठीक इसी तरह बेदिनी और कोल्हाटी जाति की औरत को भी प्रेम विश्वास और सुरक्षा के साथ साथ मान सम्मान  नहीं मिल पता. न ही उसे सभी समाज में एक औरत की गरिमा प्राप्त हो सकती है.
कहने को तो ये कलाकार है परन्तु इनकी कला को अश्लील चश्मे के साथ देखा जाता है नोटंकी एक विधा है जो a अमिर लोगो  के मनोरंजन के लिए पली पोसी गयी . रात के अँधेरे में जुगनू की तरह थिरकते कलाकारों के कला का श्रम  बहुत ही कम आँका गया.  कम पढ़े परन्तु गजब का का हुनर और उनका अभिनय किसी फिल्मी अदाकारों से ऊपर ही होगा.
आज कोल्हाटी जाति या बेडिया जाति की बालिकाए रात्रि नाट्य से बहार  हो कर आइटम सांग  या  उस पर नाच करती है या  बड़े होटल में कैबरे डांस  करती है बार गर्ल के रूप में पहचानी जाती है . कई बार ये धंधे उनेह सैक्स वर्क की और धकेल कर ले जाते है . मर्दों के संसर्ग से पैदा हुए बच्चो को वे अपनी जिम्मेदारी पर स्वम् पालती है और उनेह अपने बच्चो के पिता का नाम नहीं मिलता .वे पत्नी का ओहदा न प् कर रखैल या उप-पत्नी कहलाती है
नोटंकी  स्टाइल को संगीत नाटक अकादमी या अन्य कला केंद्र इस कला  को सहेज कर रखने के लिए बहुत प्रयास तो करते है लेकिन इसमें पारंगत पारम्परिक  कालकारो  को वो स्थान या सम्मान नहीं देते जिसके वो  हकदार है. . कालकारो के लिए संस्कृति मंत्रालय आवास , पेंशन मुहैय्या कराई जाती है लेकिन बेडिया समुदाय के कलाकारों को एस तरह की सुविधा नहीं मिलती अगर कुछ प्रावधान है भी तो शर्ते पूरी कर्ण की उनकी क्षमता नहीं है.. मसलन उनेह मात्र 4000  प्रति माह की पेंशन के लिए अनेक कागजी कार्यवाही करनी पड़ती जिसमे उनेह काफी तकलीफ से गुजरना पड़ता है और प्रशासनिक अडचनों और फटकारो को झेलना पड़ता है
नोटंकी कलाकारों के बच्चे मुख्यधरा में नही मिल पाते . पिता का नाम न पाने के कारन आत्महीनता से गुजरते है अच्छी शिक्षा और वातवरण के आभाव में उनका समुचित विकास अवरुद्ध हो जाता है .  सरकार , सभी समाज और दलित आंदोलनों के साथ साथ महिला आंदोलनों का नैतिक दायित्व बनता है कि इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए जरुरी है उनको समुचित शिक्षा और आगे बदने के वक्ल्पिक अवसर मिले . जीवन यापन लायक पेंशन मिले और पेंशन की उम्र 60 वर्ष से घटा कर ४० वर्ष कर देनी चाहिए ताकि सही समय पर वे सम्मानजनक जिन्दगी जीने की तरफ बाद सके 

Thursday, May 7, 2015

ताड़का ब्लाग क्यों

मैंने अपने ब्लाग का नाम बदल कर ताड़का रख लिया है . ताड़का का नाम सुन कर आप हैरान तो नहीं हो गये . रामलीला में एक औरत जो विश्वामित्र को यज्ञ करने से रोकती है और विश्वामित्र क्रोधित हो कर राम के पास जाते है और उसे उस औरत को दंड देने की गुहार लगाते है.
कोण है ये औरत ? ये औरत है  भूमिपूजक .. जल जंगल जमीन की मालिक जो अपने परिश्रम से अनाज उगती है . और अपने श्रम से खाद्यान्न भरती है ऐसे में कोई व्यक्ति पूजा के नाम पर सब अनाज धूनी में झोक क्र जला दे तो उसे गुस्सा आएगा ही न?
ताड़का एक आदिवासी कबीलाई नेत्री थी जो अपने काबिले की भूमि आनाज  की सुरक्षा करने में समर्थ थी.
ताड़का नाम से उस औरत की छवि उभर कर आती है जो लडती है , जो ताकतवर है जो अपने फैसले खुद लेती है और अपने राज्य की अपनी भूमि की रक्षा करती है
आज से मै अपने  auther ब्लॉग को ताड़का ब्लाग  में बदल रही हु ताकि मेहनती औरत की छवि को मजबूत किया जा सके .

ताड़का ब्लाग में आपका स्वागत है .. आपकी क्या रे है ?