Saturday, December 9, 2017

महिलाओ के विरूद्ध हिसा

आज महिला हिंसा के खिलाफ मनाये जा रहे पखवाडा का अन्तिम दिन है. विश्वभर मे महिलाओं के खिलाफ हिंसा को नकारने और महिलाओ को न्याय, समता समानता दिलाने के प्रयोजन से ही अन्तर राष्ट्रीय स्तर पर यह पखवाडा मनाया जाता है. हर देश मे महिलाओ की विभिन्न स्तर पर हिंसा की घटनाये देखने को मिलती है. हमारे देश भारत मे महिलाओं के साथ यौनिक हिसा,  जातिय हिसा , आर्थिक गुलामी, सिविल राईट से वंचित , बेगारी, छुआ-छूत,  साम्प्रदायिकता,  कुपोषण, असमान वेतन, गैर बराबरी उनके जीवन मे हिंसा का विकृत रूप ले कर आता है.

भारतीय सभाज मे महिलाओ को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है. भारतीय संस्कृति  विभिन्न
धर्मो की जकडबनदी  के शिकंजा मे किसी हुई है. त्योहारों  के नाम पर पुरूष महिमामंडन के अतिरेक  मे स्त्रियो को पूजा पाठ, उपवास, या पानी मे खडे हो कर सूर्य पूजा करने से ले कर होली के अवसर पर होलिका दहन स्त्रि दहन मे महिलाओं को आगे करके उल्लास मनाया जाता है और महिलायें अपनी धार्मिक भावनाओ के साथ ये भी भूल जाती  हैं कि वे खुद एक औरत है
शादी मे एक बडी परम्परा  है कि कन्या दान की जाये? क्यू  क्या  वह इन्सान  नही? कन्या दान  दहेज, तिलक गरीब से गरीब और अमीर, पूँजीपति सब इसलिये करते  है कि उन्हे  सवरग  मिले.  सम्पत्ति मे लडकी के अधिकार को नकार कर उसे खुद से अलग कर देते है. परम्पराओं के नाम पर छोटा मोटा गिफ्ट या कैश दे  कर  अपने बडप्पन भी दिखा देते है. पढाई लिखाई बीच मे रोक कर शादी करके अपने फर्ज से हाथ झाड़ लेते है
बिहार झारखंड की यात्रा के दौरान मैने महसूस किया आज भी यहां का समाज सामन्त युग मे जी रहा है. रेल यात्रा के दौरान देखा कि महिला डिब्बे मे पुरूष भरे पडे है.  न केवल भरे पडे है बल्कि महिलाओ के लिये कोई जगह ही नही है. यहाँ तक कि जवान जवान लडके सीट हथियाये बैठे रहते है बुजुर्ग  महिलाये, छोटे  छोटे बच्चो को गोद मे लिये महिलाये ,छात्राएँ  कामकाजी मजदूर महिला ऐ घनटो खडे हो कर, भिच भिच कर  फर करती  हैं. जरनल डिब्बा  हो या महिला डिब्बा सब जगह एक जैसा माहौल है, महालाऐ इस नाइंसाफ़ी के खिलाफ कुछ नही बोलती

असमान वेतन, न्यूनतम वेतन न मिलना आ स पास गाव देहातों मे गन्दगी के ढेर और मर्दानगी भरा माहौल घर बाहर का काम, शराब पी कर औरतो को पीटने के कृत्य  हैरान नही करते. ऐसे समय मे जब हिसा के खिलाफ अभियानों मे महिलाओ के दुखो की दास्ताँने खुल कर सामने आती. महिलाओ को 50 प्रतिशत स्थानीय निकायों में जगह दी गयी है परन्तु  उनके हिस्से के अधिकारों का उपयोग पति व बेटे करते है. इन महिलाओ को प्रशिक्षण भी नही दिया जाता. सरकारी योजनाओं तक की जानकारी नही होती ऐसे मे अपने अधिकारो का इसतेमाल कैसे कर  सकेगी

महिलाओ पर हिंसा न हो ज़रूरी है पुरूषो को  सम्वेदनशील बनाया जाये और महिलाओं की शिक्षा अनिवार्य हो
उन्हे स्वावलंबी बनाये बिना उनकी शादी न हो

Friday, January 6, 2017

फातिमा शेख




सावित्री बाई फुले और उनके कार्यो के बारे में अब समाज को कुछ जानकारी मिली है. उत्तेर भारत का महिला आन्दोलन भी कुछ उनेह जानने लगा है. दलित महिलाओ ने उनके जीवन को केन्द्रित करके अपने संगठनो  को उनकी विचार धरा को आत्मसात किया है और उनके बताये रस्ते पर चल कर अपना आन्दोलन विकसित कर रही है
सावित्री बाई फुले पर हिंदी में पहली किताब प्रकाशन विभाग से प्रकाशित हुई जो महिलाओ तक अपनी पहुँच बनाने में असमर्थ रही. उत्तर भारत  में हिंदी में दूसरी पुस्तक सावित्री बाई फुले की जीवनी सेंटर फार आल्टर नेटिव दलित मिडिया द्वारा जनहित में  प्रकाशित की. झोडगे बाई की मराठी में लिखी इस पुस्तक को    हमने अनुवाद करायी शलेश और शेखर पवार से. अनुवाद हिंदी भाषाई न होने के कारन पुनर लेखन किया कुछ साथियों ने छपने में सहयोग किया

आज पूर्वे भारत में सावित्री बाई फुले के जन्मदिन को कुछ लोग शिक्षा दिवस मानते है  महिलाए और महिला आन्दोलन  ३ जनवरी को भारतीय महिला दिवस के रूप में मानाने लगे है . राष्ट्रिय दलित महिला आन्दोलन के बैनर और नेतृत्व  में  2014 से (भारुलाता काम्बले एवं रजनी तिलक ) महिला दिवस बनाना शुरू किया.

आज हमें फातिमा शेख के जीवन के बारे में खोज करने की जरुरत पद गयी है उम्मीद है जल्द ही उनके जीवन के बारे में जानकारी खोज निकालेंगे Fatima Sharif ke friends I would like no I would like to know about Fatima Shaikh I search at Google at Wikipedia enquiry with my friends about Fatima Shaikh and her life story and there is work why I did find wind and would you can help me to explain about it myself whether it can be Hindi or it can be English or Marathi please let me know about other shit Fatima Shaikh

Monday, June 22, 2015

योग और हम




पुरे देश में योग के साथ कसरत पूरी हुई . देश के प्रधानमंत्री ने राजपथ पर योग का भारत की अगुआई में पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस बनाया . यह दिवस १९२ देशो के २५१ देशो में बड़े उत्साह  से मनाया गया. .दिल्ली  देश की राजधानी दिल्ली  के राजपथ पर ३५ हजार लोगो के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी  अपने मंत्रीमंडल और अधिकारियो समेत  स्वम् योग करने और कराने के लिए उपस्थित हुए थे. यह कोई नयी बात तो नहीं परन्तु योगा पर ध्यान केन्द्रित हुआ है यह विशेष बात जरुर है

मुझे याद है कि गोल डाकखाने के पास मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ योगा है जन्हा हम कालेज के समय योग सीखने जाते थे . मै  तो ज्यादा दिन नहीं जा पाई मेरी  सहेलिया जरुर नियमित रूप से योगा सिखने जाती थी.  ये इंस्टिट्यूट योग टीचर का 40 दिन से तीन महीने का कोर्स कराता था  उसके बाद योग अध्यापक की नोकरी भी मिल जाती थी .मेरी एक मित्र नीलम जो पहाड़ी मूल थी, सरकारी नोकरी में हम दोनों एक साथ आये थे . उसने नोकरी से छुट्टी ले कर  योग टीचर कोर्से किया था. तरह तरह के आसन के बारे में वो हमें बताती थी . विशेषटी कुंजल के बारे में बताती थी की सुबह उठ कर कुंजल करने से हमारे पेट के आसपास  अन्दर की गंदगी निकल जाती है और गला भी साफ रहता है . मैंने भी उससे कुंजल करना सीखा था.

पिछले वर्षो वाट रोग और अस्थमा होने के कारन मैंने सोचा था  कि योग पूरा सीखा जाए . जब मै मोररार्जी संसथान में गयी तो पता चला कि सुबह ६-९ या ३-६ के  सत्र है कुछ फीस भी थी . समय विकल्प न होने की वजह से सोचा घर पर ही कुछ टिप्स ले लू .  एक मित्र ने फोन न. दिया की आप घर सीख ले .फ़ोन न के कर बात करने पर पता चला  कि घर आ कर  सिखाने के लिए 500 एक घंटा और कम से कम २० दिन सीखना होगा . योग सीखना इतना महंगा हो गया  . उस समय मुझे महसूस हुआ की योग अब मध्यम वर्ग का फैशन हो गया है क्योंकि टीवी पर डांस के साथ योगा  न्यूस चैनल का विशेष कार्यक्रम होने लगे. मिडल क्लास कालोनियों में योग का प्रचलन शुरू हो गया था. योग  सुबह सुबह महिलाओ का अलग ग्रुप  और पुरुषो का अलग ग्रुप देखने को मिलता.   मेडिटेशन करने की ललक भी मिडिल क्लास में देखने को बहुत मिलती है

अब सवाल योग और मेडिटेशन के इतिहास और उनके स्त्रोत पर जाता है. हमारे भाई जो अम्बेडकरवादी है और जो बुद्धिस्ट है कह रहे है कि योग हमारी विरासत है . बुद्ध ने जब घर छोडा तब सबसे पहले उन्होंने  योगविद्या सीखी और वो उसमे सिध्हस्त हुए... अंत में मेडिटेशन  में . बुद्धा  द्वारा तन और मन को समझने की विद्या के साथ साथ माध्यम मार्ग और सभी तरह के पावर को समझने की , दुखो को दूर करने के उपदेश हमारे सम्मुख है फिर भी हमारे बोध विहारों में इस तरह  के अभ्यास क्यों नहीं हो पाते . जो काम हमें अपने प्रयास से करने चाहिए .. न कर पाने की स्थिति में  हमर खिन्न होना स्वाभाविक है . योग गरीब आदमी के लिए उसके परिश्रम में मौजूद है .. उसकी सामूहिकता में सहजता और मित्रता है जो उसे सहज रखती और खान पान में दुरुस्त . योग की जरुरत आज आराम परस्त , माध्यम वर्ग को है जो अनियमित  जीवनचर्या  और खान पान और दिखावे की जिन्दगी का आदि हो रहा है .. उसे जरूरत है.. वह सुबह जल्दी उठे .. कुछ काम न करे तो योग तो करे जिससे उसका शरीर स्वस्थ रह सके  

Saturday, May 9, 2015

नोटंकी कलाकार और उनका भविष्य

 नोटंकी मलिका  गुलाब बाई का नाम तो सबने सुना होगा. जीवन के अंत में उनेह पद्मश्री अवार्ड  मिला . बचपन से बुढ़ापे तक ता  जिंदगीभर वे घुंघरु के साथ दोस्ती में बंधी रही .. बेडिया समुदाय प्राय नाच और गाने के व्यवसाय में अपनी रोजी रोटी की जरुरत भर पूरी करता है .परिवार की बड़ी लड़की को नाच गाना सिखा कर उसे इस धंधे में प्रेरित किया जाता है  की वो नोटंकी में नाचते गाते  हुए हस हंस कर बचपन से जवानी ओए जवानी से बुढ़ापे तक अपने परिवार का पेट भरे और उनेह सुरक्षा दिलाए .
दलित महिला जो देवदासी बन कर अपने परिवार की मर्यादा और जीवन आधार बन जाती है उसे जीवन में कभी अपने लिए मान सम्मान और सुरक्षा और प्रेम नहीं मिलता ठीक इसी तरह बेदिनी और कोल्हाटी जाति की औरत को भी प्रेम विश्वास और सुरक्षा के साथ साथ मान सम्मान  नहीं मिल पता. न ही उसे सभी समाज में एक औरत की गरिमा प्राप्त हो सकती है.
कहने को तो ये कलाकार है परन्तु इनकी कला को अश्लील चश्मे के साथ देखा जाता है नोटंकी एक विधा है जो a अमिर लोगो  के मनोरंजन के लिए पली पोसी गयी . रात के अँधेरे में जुगनू की तरह थिरकते कलाकारों के कला का श्रम  बहुत ही कम आँका गया.  कम पढ़े परन्तु गजब का का हुनर और उनका अभिनय किसी फिल्मी अदाकारों से ऊपर ही होगा.
आज कोल्हाटी जाति या बेडिया जाति की बालिकाए रात्रि नाट्य से बहार  हो कर आइटम सांग  या  उस पर नाच करती है या  बड़े होटल में कैबरे डांस  करती है बार गर्ल के रूप में पहचानी जाती है . कई बार ये धंधे उनेह सैक्स वर्क की और धकेल कर ले जाते है . मर्दों के संसर्ग से पैदा हुए बच्चो को वे अपनी जिम्मेदारी पर स्वम् पालती है और उनेह अपने बच्चो के पिता का नाम नहीं मिलता .वे पत्नी का ओहदा न प् कर रखैल या उप-पत्नी कहलाती है
नोटंकी  स्टाइल को संगीत नाटक अकादमी या अन्य कला केंद्र इस कला  को सहेज कर रखने के लिए बहुत प्रयास तो करते है लेकिन इसमें पारंगत पारम्परिक  कालकारो  को वो स्थान या सम्मान नहीं देते जिसके वो  हकदार है. . कालकारो के लिए संस्कृति मंत्रालय आवास , पेंशन मुहैय्या कराई जाती है लेकिन बेडिया समुदाय के कलाकारों को एस तरह की सुविधा नहीं मिलती अगर कुछ प्रावधान है भी तो शर्ते पूरी कर्ण की उनकी क्षमता नहीं है.. मसलन उनेह मात्र 4000  प्रति माह की पेंशन के लिए अनेक कागजी कार्यवाही करनी पड़ती जिसमे उनेह काफी तकलीफ से गुजरना पड़ता है और प्रशासनिक अडचनों और फटकारो को झेलना पड़ता है
नोटंकी कलाकारों के बच्चे मुख्यधरा में नही मिल पाते . पिता का नाम न पाने के कारन आत्महीनता से गुजरते है अच्छी शिक्षा और वातवरण के आभाव में उनका समुचित विकास अवरुद्ध हो जाता है .  सरकार , सभी समाज और दलित आंदोलनों के साथ साथ महिला आंदोलनों का नैतिक दायित्व बनता है कि इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए जरुरी है उनको समुचित शिक्षा और आगे बदने के वक्ल्पिक अवसर मिले . जीवन यापन लायक पेंशन मिले और पेंशन की उम्र 60 वर्ष से घटा कर ४० वर्ष कर देनी चाहिए ताकि सही समय पर वे सम्मानजनक जिन्दगी जीने की तरफ बाद सके 

Thursday, May 7, 2015

ताड़का ब्लाग क्यों

मैंने अपने ब्लाग का नाम बदल कर ताड़का रख लिया है . ताड़का का नाम सुन कर आप हैरान तो नहीं हो गये . रामलीला में एक औरत जो विश्वामित्र को यज्ञ करने से रोकती है और विश्वामित्र क्रोधित हो कर राम के पास जाते है और उसे उस औरत को दंड देने की गुहार लगाते है.
कोण है ये औरत ? ये औरत है  भूमिपूजक .. जल जंगल जमीन की मालिक जो अपने परिश्रम से अनाज उगती है . और अपने श्रम से खाद्यान्न भरती है ऐसे में कोई व्यक्ति पूजा के नाम पर सब अनाज धूनी में झोक क्र जला दे तो उसे गुस्सा आएगा ही न?
ताड़का एक आदिवासी कबीलाई नेत्री थी जो अपने काबिले की भूमि आनाज  की सुरक्षा करने में समर्थ थी.
ताड़का नाम से उस औरत की छवि उभर कर आती है जो लडती है , जो ताकतवर है जो अपने फैसले खुद लेती है और अपने राज्य की अपनी भूमि की रक्षा करती है
आज से मै अपने  auther ब्लॉग को ताड़का ब्लाग  में बदल रही हु ताकि मेहनती औरत की छवि को मजबूत किया जा सके .

ताड़का ब्लाग में आपका स्वागत है .. आपकी क्या रे है ?

Monday, April 20, 2015

डॉ अम्बेडकर को हम महिलाओ का सलाम

14 अप्रैल पूरे देश में बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है .दक्षिण भारत से लेकर उत्तेर भारत तक और पश्चिम भारत से पूर्वी भारत में डॉ आंबेडकर जयंती की रोनक देखते ही बनती है . डॉ अम्बेडकर के बारे में बात करे तो अक्सर बकात दलित वर्गों की आ जाती है यंहा तक की बात आरक्षण पर आ कर रुक जाती है आज़ाद भारत में   डॉ अम्बेडकर को  दलितों का मसीहा कहा जाता है .जबकि डॉ अम्बेडकर के समस्त कार्यो का मूल्यांकन  करे तो हम पाएंगे कि वे एक कुशल अर्थशास्त्री थे , समाजवैज्ञानिक थे, कानून विशेषज्ञ  थे मजदुर नेता थे , पत्रकारिता में प्रखर विद्वान् और महिलाओ के अधिकार के चैम्पियन थे
डॉ अम्बेडकर एक प्रबुद्ध भारत का सपना देखते थे अतः उन्होंने सविधान के पहले पन्ने पर यानि की प्रस्तावना में सभी जातियों के स्त्री पुरुषो को बराबरी दी . स्त्री-पुरुष असमानता व छुआछूत की समाप्ति करके समानता की गारंटी दी. गरीब आमिर , मजदुर मालिक के बीच सामाजिक समानता का सूत्रपात किया . वर्ण वर्ग जाति लिंग भेद रहित  सभी को वोट देने का अधिकार दिया.
डॉ अम्बेडकर ने महिलाओ को समानता दिलाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका  अदा की . युनिफाम सिविल कोड  से ले कर हिन्दू कोड बिल  को लाने  में उन्होंने पुरजोर लगाया कि  महिलाओ को समाज में बराबरी का हक्क मिले उन्हें पति और पिता की सम्पति में भाइयो के साथ सम्पति का हक्क मिले . पति की सम्पति में  वैवाहिक सम्पति  में हक्क मिले जिससे पति और ससुराल ली गुलामी से वो मुक्त हो कर अपना जीवन स्वाभिमान से जी सके
हिन्दू कोड बिल ने महिलाओ के भरण पोषण,  तलाक लेना न देने के साथ साथ पति की हैसियत के हिसाब से खर्चे का अधिकार दिया . भारतीय सविधान  ने  औरत को दत्तक पुत्र पुत्री गोद लेने व अपनी सम्पति संरक्षण का अधिकार दिया. अपनी मर्जी से जीने ओर  अपनी आजादी से आने जाने का हक्क दिया.  महिला कर्मचारियो को  प्रसूति अवकाश और मजदुर औरतो को पुरुष मजदूरो के समक्ष  न्यनतम वेतन व  समान वेतन समान घंटे काम का अधिकार मिला. इतने सब अधिकार महिलाओ को बिना लड़े .. बिना संघर्ष किये  आराम से मिल गये

डॉ अम्बेडकर की जयंती को दलित महिलाए एक महिला के रूप में डॉ अम्बेडकर के महिलाओ के प्रति योगदान को याद करती है . वे डॉ अम्बेडकर की जीवनी पढ़ कर उनके संघर्षो के साथ स्वम् को जुड़ा देखती है. और दलित स्वम् को एक इंसान के  रूप में अपने मानवीय हक्को को पाने व भोगने के लिए डॉ अम्बेडकर के योगदान को नहीं भूलते .
महिलाओं के अधिकारों के चैम्पियन डॉ अम्बेडकर को याद न करने वाली महिलाओ के बारे में क्या कहा जाये ?
उनके  शोध ..विमर्श और लेखन में डॉ अम्बेडकर और उनकी विचारधारा कंही दूर तक नहीं  आते तभी तो नयी पीढिया अब सवाल करने लगी है की महिला आन्दोलन डॉ आंबेडकर को क्यों नहीं  जनता?  

Saturday, April 18, 2015

कोशल्या बैसंत्री एक लेखिका – एक एक्टिविस्ट

लेखिका कौशल्या बैसेंत्री डॉ अम्बेडकर के छात्र आन्दोलन की सचिव व् युवा नेत्री कौशल्या नंदेश्वर  थी . १९४२ के महिला अधिवेशन में उन्होंने सक्रिय भूमिका अदा की थी इनके माँ –पिता नागपुर की एक्सप्रेस मील में मजदूरी करते थे. पिता मशीनों में तेल डालने का  काम तो माँ इसी मील में धागा बनाने वाले विभाग में कार्यरत्त थी.  इनके माता पिता बहुत ही जीवट एवं मेहनती थे. माता-पिता को 13 सन्तान- 10 लडकिया और तीन लड़के हुए जिनमे से 6 लडकिय और एक लड़का ही जीवित बचा
कौशल्या बैसेंत्री बचपन से ही डॉ अम्बेद्गर के विचारो से प्रभावित थी. उनकी थोड़ी शिक्षा महारष्ट्र की महान सोशलवर्कर जाई बाई चोधरी के स्कूल में हुई. गरीबी और समाजकार्य से जुड़ जाने के कारन आसपास की लडकियो की अपेक्षा इनकी शादी थोड़ी सी देर से हुई. इनकी शादी कोर्ट में बिहार के युवा देवेन्द्र बैसेंत्री से हुई , देवेन्द्र बैसेंत्री भी डॉ अम्बेडकर के समय में छात्र आन्दोलन में सकीय थे. दोनों की पहचान ही आपसी शादी का आधार बनी. पति के साथ रहते हुए कुछ ही समय में आपसी मतभेद होने के कारन इन्हे काफी दिक्कते उठानी पड़ी.
कौशल्या बैसेंत्री घर के काम में न केवल दक्ष थी बल्कि वे कलात्मक प्रवृतिकी थी अत  गृहसज्जा में बहुत ही कुशल थी. पढना लिखना,  संगीत, पेंटिंग सब उनकी रूचिकर दुनिया का हिस्सा था. महिलाओ के अधिकारों को लेकर भी बहुत सम्वेदनशील थी. वे मुनिरका डी डी ए फ्लैट में रहती थी पास में ही मुनिरका गाव भी था  ठीक गाव के पीछे जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय भी था. जब भी जेएनयू में कोई प्रोग्रम होता तो उनेह बुलाया जाता था. मुनिरका गाव की महिलाओ के लिए उन्होंने कोशिश की कि वंहा सिलाई सिखाई जाए क्योंकि वो स्वम् सिलाई कढ़ाई जानती थी और इस हुनर के  साथ क्राफ्ट काम से महिला उद्यम शुरू हो सकता था. वह जल्द ही बंद हो गया परन्तु ये सब उन संगदिल पुरुषो की वजह से हुआ जो मान कर चलते है कि औरत की जिन्दगी घर की चार दिवारी के पीछे है. बैसंत्री जी ने पहल करके  भारतीय महिला जग्रिति परिषद मनाई जिसका उद्देश्य था महिला अधिकारों के साथ साथ दलित महिलाओ को मुख्यधारा के साथ जोड़ना .इस संगठन ने दलित महिलाओ के सवाल मुख्यधारा के महिला आंदोलनों के समक्ष रखे.
कौशल्या बैसेंत्री एक जागरूक नागरिक थी और लोगो को जगाने और उनकी जानकारी बदने के लिए मरठी से अनुदित करके  हिंदी में कई लेख लिख कर समाज को दिए  उन्होंनेलेखिका उर्मिला पवार की एक कहानी हिंदी में अनुवाद की जो हंस में छपी . पत्रकारिता पर शोधात्मक कार्य कर रहे डॉ श्य्राज सिंह बैचैन को मदद की . अस्पृश्यता पर लेख लिखे. मुक्ताबाई के कामो पर लेख लिखा.वह एक अच्छी सामाजिक कार्य करता थी साथ ही अच्छी इंसान भी.अपनी आत्मकथा दोहरा अभिशाप लिखा जिसमे उन्होंने दलित स्त्रियों की जिजीविषा पर रौशनी डाली
महिलाओ की प्रेरक थी. भारतीय महिला जाग्रति परिषद् में बहुतसी महिलाओ को एकत्र किया और समाज के मुद्दों को उनेह समझती व प्रतिनिधित्व देती . दलित महिलाओ के मुद्दे पर वो अनुसूचित जाति आयोग  के अध्यक्ष  रामधन से मिली, राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह जी से मिली .. उम्र बड़ने और घर में बेटे की बहु और पति से सहयोग न मिलने के कारण मजबूरन उनेह अपनी बेटी सुजाता के घर रहना पड़ा. पति द्वारा घर में जगह और खर्चे की कोताही करने पर पति पर भरण पोषण और घर में रहने की जगह के लिए केस दायर किया जिसमें उनकी बेटी  और सबसे छोटे बेटे ने मदद की. कोर्ट से खर्चा मिलने लगा पति की मृत्यु के बाद सबसे छोटा बीटा आतिश बैसेंत्री उनेह अपने साथ मद्रास ले गये. मद्रास में अपने बेटे बहु के साथ रही परन्तु धीरे धीरे उनकी सुनने की शक्ति क्षीण होती गयी और साथ ही याद रखने की क्षमता भी
जीवन के अंतिम दिनों में वो अपने सबसे छोटे बेटे आतिश जिनेह वो बाबा कहती थी के साथ रही और २४ जून 2012 में उन्होंने अपना पार्थिव शारीर छोड़ दिया.

( ये लेख  कौशल्या बैसेंत्री की आत्मकथा दोहरा अभिशाप को  शिवाजी विश्वविद्यालय , कोल्हापुर में बीए भाग ३ में लगाने के लिए प्रा गोरख बनसोडे के सवालों के जबाब ले लिए लिखा गया है)

उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक  दोहरा अभिशाप.  भूमिका  मस्तराम कपूर
प्रकाशक  परमेश्वरी प्रकाशन , प्रीत विहार डेल्ही -110 92  मूल्य 140 रूपये
ISBN 978-81-88121-98-

                                                                               .................................by Rajni Tilak