लेखिका कौशल्या बैसेंत्री डॉ अम्बेडकर के
छात्र आन्दोलन की सचिव व् युवा नेत्री कौशल्या नंदेश्वर थी . १९४२ के महिला अधिवेशन में उन्होंने सक्रिय
भूमिका अदा की थी इनके माँ –पिता नागपुर की एक्सप्रेस मील में मजदूरी करते थे.
पिता मशीनों में तेल डालने का काम तो माँ
इसी मील में धागा बनाने वाले विभाग में कार्यरत्त थी. इनके माता पिता बहुत ही जीवट एवं मेहनती थे. माता-पिता
को 13 सन्तान- 10 लडकिया और तीन लड़के हुए जिनमे से 6 लडकिय और एक लड़का ही जीवित
बचा
कौशल्या बैसेंत्री बचपन से ही डॉ
अम्बेद्गर के विचारो से प्रभावित थी. उनकी थोड़ी शिक्षा महारष्ट्र की महान
सोशलवर्कर जाई बाई चोधरी के स्कूल में हुई. गरीबी और समाजकार्य से जुड़ जाने के
कारन आसपास की लडकियो की अपेक्षा इनकी शादी थोड़ी सी देर से हुई. इनकी शादी कोर्ट
में बिहार के युवा देवेन्द्र बैसेंत्री से हुई , देवेन्द्र बैसेंत्री भी डॉ
अम्बेडकर के समय में छात्र आन्दोलन में सकीय थे. दोनों की पहचान ही आपसी शादी का
आधार बनी. पति के साथ रहते हुए कुछ ही समय में आपसी मतभेद होने के कारन इन्हे काफी
दिक्कते उठानी पड़ी.
कौशल्या बैसेंत्री घर के काम में न केवल
दक्ष थी बल्कि वे कलात्मक प्रवृतिकी थी अत
गृहसज्जा में बहुत ही कुशल थी. पढना लिखना, संगीत, पेंटिंग सब उनकी रूचिकर दुनिया का हिस्सा
था. महिलाओ के अधिकारों को लेकर भी बहुत सम्वेदनशील थी. वे मुनिरका डी डी ए फ्लैट
में रहती थी पास में ही मुनिरका गाव भी था ठीक गाव के पीछे जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय
भी था. जब भी जेएनयू में कोई प्रोग्रम होता तो उनेह बुलाया जाता था. मुनिरका गाव
की महिलाओ के लिए उन्होंने कोशिश की कि वंहा सिलाई सिखाई जाए क्योंकि वो स्वम् सिलाई
कढ़ाई जानती थी और इस हुनर के साथ क्राफ्ट
काम से महिला उद्यम शुरू हो सकता था. वह जल्द ही बंद हो गया परन्तु ये सब उन
संगदिल पुरुषो की वजह से हुआ जो मान कर चलते है कि औरत की जिन्दगी घर की चार
दिवारी के पीछे है. बैसंत्री जी ने पहल करके
भारतीय महिला जग्रिति परिषद मनाई जिसका उद्देश्य था महिला अधिकारों के साथ
साथ दलित महिलाओ को मुख्यधारा के साथ जोड़ना .इस संगठन ने दलित महिलाओ के सवाल
मुख्यधारा के महिला आंदोलनों के समक्ष रखे.
कौशल्या बैसेंत्री एक जागरूक नागरिक थी और
लोगो को जगाने और उनकी जानकारी बदने के लिए मरठी से अनुदित करके हिंदी में कई लेख लिख कर समाज को दिए उन्होंनेलेखिका उर्मिला पवार की एक कहानी हिंदी
में अनुवाद की जो हंस में छपी . पत्रकारिता पर शोधात्मक कार्य कर रहे डॉ श्य्राज
सिंह बैचैन को मदद की . अस्पृश्यता पर लेख लिखे. मुक्ताबाई के कामो पर लेख लिखा.वह
एक अच्छी सामाजिक कार्य करता थी साथ ही अच्छी इंसान भी.अपनी आत्मकथा दोहरा
अभिशाप लिखा जिसमे उन्होंने दलित स्त्रियों की जिजीविषा पर रौशनी डाली
महिलाओ की प्रेरक थी. भारतीय महिला
जाग्रति परिषद् में बहुतसी महिलाओ को एकत्र किया और समाज के मुद्दों को उनेह समझती
व प्रतिनिधित्व देती . दलित महिलाओ के मुद्दे पर वो अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष
रामधन से मिली, राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह जी से मिली .. उम्र बड़ने और घर
में बेटे की बहु और पति से सहयोग न मिलने के कारण मजबूरन उनेह अपनी बेटी सुजाता के
घर रहना पड़ा. पति द्वारा घर में जगह और खर्चे की कोताही करने पर पति पर भरण पोषण
और घर में रहने की जगह के लिए केस दायर किया जिसमें उनकी बेटी और सबसे छोटे बेटे ने मदद की. कोर्ट से खर्चा
मिलने लगा पति की मृत्यु के बाद सबसे छोटा बीटा आतिश बैसेंत्री उनेह अपने साथ
मद्रास ले गये. मद्रास में अपने बेटे बहु के साथ रही परन्तु धीरे धीरे उनकी सुनने
की शक्ति क्षीण होती गयी और साथ ही याद रखने की क्षमता भी
जीवन के अंतिम दिनों में वो अपने सबसे
छोटे बेटे आतिश जिनेह वो बाबा कहती थी के साथ रही और २४ जून 2012 में उन्होंने
अपना पार्थिव शारीर छोड़ दिया.
उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक दोहरा अभिशाप. भूमिका
मस्तराम कपूर
प्रकाशक
परमेश्वरी प्रकाशन , प्रीत विहार डेल्ही
-110 92 मूल्य 140 रूपये
ISBN 978-81-88121-98-.................................by Rajni Tilak