Saturday, March 21, 2015

रजनी तिलक


रजनी तिलक,  लेखिका कवियित्री व स्त्रीमुक्ति आन्दोलन की अग्रणीय नेता है. इनका जन्म पुराणी दिल्ली में जमामस्जिद के पास कटरा रजाराम में, जाटव समाज के माँ. दुलारे लाल व् जावित्री देवी के घर में हुआ .  27 मई 1958 को हुआ . इनके पिता दुलारे लाल  टेलरिंग में पैटर्न  मास्टर थे और माँ जावित्री देवी,घर में रह कर अपने सात बच्चो का लालन पालन करने के  लिये  घर में लिफाफे बना कर घर खर्च  में मदद करती थी.
माँ के अचानक मनोरोगी हो जाने के कारण घर में  बड़े बच्चो पर उनकी देखभाल व अन्य बच्चो की देखभाल की  जिम्मेदारी आ गयी बड़े भाई  मनोहर के साथ रजनी तिलक ने अपने बहन भाइयो की देख रेख की . जिसके कारन एन दोनों की पढाई पर दुस्प्रभाव पड़ा .बड़ा भाई वामपंथी आन्दोलन में सक्रिय हुआ तो साथ साथ रजनी और अशोक भारती का भी रुझान उस तरफ झुक गया उस समय .दो भाई और दो बहने बहुत छोटी थी. कॉलेज में जाने व पदाई न  करने पर पिताजी का दब्ब था. लेकिन रजनी की जिद्द व भाई की मदद से आगे की पड़ी जरी की . आई टी आई सिलाई कटायी में कर्जन रोआ के प्रशिक्षण लिया, साथसाथ B .A की शिक्षा नॉन कालेजिएट सी ली, अंग्रेजी और हिंदी में शार्ट हैण्ड व  टाईप सीखी 
छात्र जीवन में ही दलित आन्दोलन , स्त्री मुक्ति आन्दोलन के साथ शामिल हो गयी . सहेली के साथ मिल कर महिलाओ के विरुद्ध भेदभाव  के खिलाफ संघर्ष किया . आंगनवाडी कार्यकर्त्ता व हेल्पेर्ट्स की यूनियन बने दिल्ली ४ हजार औरतो का संगठन बनाया .दलित पैंथर दिली यूनिट बना दलित अत्य्चारो का विरोध करने की  मुहिमों में स्शामिल रही  50 से ज्यादा अत्य्चारो की फैक्ट फायिन्डिंग टीम की सदस्य रही.  बामसेफ में १९७८ से १९८४ तक सक्रिय कार्यकर्त्ता रही .     
संस्थपक सदस्य अखिल भारतीय आंगनवाडी वर्कर और हेल्पर यूनियन , आह्वान थियेटर,  नेशनल फेडरेशन दलित वीमेन, नेक्दोर, वर्ल्ड डिग्निटी फोरम दलित लेखक संघ और राष्ट्रिय दलित महिला आन्दोलन 
राष्ट्रिय महिला आयोग द्वारा दो बार अनुसूचित जाति की एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया .एवं आउटस्टैंडिंग वीमेन अचीवर अवार्ड से सम्मानित किया 
इन्ह दलित महिलाओ के के मुद्दे पर अनेक बार  रास्ट्रीय टीवी चेन्नल पर आमंत्रित किया गया.पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया अभिमूक्नायक समाचार पत्र का सम्पादन किया. अनेक पुस्तके सम्पादित पुनर लेखन की . दो काव्य संग्रह,पदचाप और हवा सी बैचैन युवतिया ,- आत्मकथा शांता काम्बले, शांता दानी , बुध ने घर क्यों छोड़ा , डॉ आंबेडकर और महिलाए  , दलित मुक्ति नायिकाए समकालीन दलित महिला लेखन वोल्यूम एक और वोल्यूम दो 
दलित आदिवासी महिला संगठनों के लिए पैरवी  करके कुछ फेलोशिप जुगाड़ना . सावित्रीबाई फुले को उत्तेर भारत में परिचित करने के लिए विशेष अभियान चलाए . उनके जन्मदिन को बरतिय महिला दिवस घोषित करने का अभियान शुरू किया. 

Friday, March 13, 2015

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस


हमारे देश में महिलाओ का अनुपात पुरुषो की अपेक्षा बहुत कम है. महिलाए न केवल सख्या में कम है बल्कि  मुख्य धारा में भी उनकी उपस्थति कम है. कारण है अशिक्षा,परिवारो में सामन्ती परिवेश,  मादा भ्रूणहत्या या नवजात बालिका की हत्या, बाल विवाह, कन्यादान , दहेज़ प्रथा -दहेज़ न दिये जाने पर उनकी हत्या, घरेलु हिंसा दमन , उनेह दबा कर रखना , उनकी जिन्दगी के फैसलों पर दबाब बनाये रखना जैसे कृत्य उनके आत्मविश्वास का क्षरण करके उनेह दीन हीन बनाये रखने का क्रम  जारी रखते है.हमारे देश का संविधान सबको  समानता का अधिकार देता है फिर भी सामाजिक सच्चाई या है कि समाज में आज भी  महिलाओ और बालिकाओ के साथ लिंग भेदभाव निरंतर जारी है.
8 मार्च दुनियाभर में महिलाओ के अधिकार, संघर्ष और उपलब्धियों के सरोकारों को लक्षित करते हुए मनाया जाता रहा है . अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस महिलाओ ने अपनी पहल पर मानना शुरु किया क्योंकि महिला मजदरो के कठोर एवं अमानवीय श्रम के खिलाफ संघर्ष, युद्ध विरोधी मोर्चो के खिलाफ शान्ति हेतु और महिलाओ को उनके  वोट के अधिकार ने उनेह प्रेरित व आंदोलित किया.
माना जाता है कि लिसिसटाटा नाम की महिला ने प्राचीन ग्रीस में फ्रांस क्रांति के दुरन युद्ध समाप्ति की मांग  के साथ आन्दोलन शुरू किया . इन्ही कदमो का अनुसरण करते हुए फारसी महिलाओ ने मोर्चा निकल कर युद्ध के कारण  महिलाओ पर बढ़ते अत्याचारों को रोकने का आह्वान किया. 1857में अमेरिका में न्यूयार्क की हजारो महिला मजदूर कम वेतन,लम्बी डयूटी व उत्पीडन के खिलाफ हड़ताल के लिए निकली. . 8 मार्च 1908न्यूयार्क में वोट के अधिकार हेतु सडको पर उतरी. गारमेंट महिला मजदूरो ने न्यूयार्क में 1908 में कार्यस्थल पर सही हालातो के लिए संघर्ष झेला. पुलिस की गोलियों से बहे लहू ने परचम को लाल कर दिया.     शुरुआती दिनों में 28 फरवरी 1909 अमेरिका  की सोशलस्ट पार्टी के आह्वान पर  मजदुर औरतो के पूंजीवादी दमन के विरुद्ध महिला दिवस  फरवरी के आखिरी रविवार  को मनाया जाने लगा
इस दिन की  स्थपाना कम्युनिस्ट नेत्री  क्लारा झेत्किन के प्रस्ताव पर 8 मार्च 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेहेगन में जंहा 17 देशो की 100 प्रतिनिधि शामिल थी की सहमती मिली जिसे विश्वस्तरीय मानता मिली इसका उदेश्य था महिलाओ को वोट देना का अधिकार प्राप्त कराना. 19 मार्च 1911को यूरोप में आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी व स्विटजरलैंड में लाखो महिलाओ ने घर से बार निकल कर महिलाओ के काम के अधिकार, व्यवसायिक प्रशिक्षण, मजदुर महिलाओ के साथ भेदभाव की समाप्ति, वोट देने का अधिकार और राजनीतिक भागीदारी का हक्क माँगा.
1911 न्यूयार्क में एक फैक्ट्री में आग लगने से मजदुर औरते मालिक की संगदिली के कारण तंग दरवाजे जो  सख्ती से बंद थे ताकि मजदुर औरते अंदर कैद रहे,  की वजह से वे निकल नहीं पाई अतः  145 गारमेंट मजदुर औरते झुलस कर मर गयी. इस कृत्य के विरोध में इन महिलाओ के शवो के साथ 80 हजार से ज्यादा मजदूरो ने श्मशानघाट तक यात्रा में  शामिल हो कर अपना विरोध जताया
8 मार्च 1912, 14 हजार से ज्यादा मजदुर औरते हड़ताल पर गयी जिन्होंने काम की जगह अमानवीय वातावरण का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि काम करते करते मर जाने से अच्छा है भूखे मर जाए उनके इस अदम्य साहस से एक मशहूर सुंदर गीत बना और गए जाने लगा “ब्रेड एंड रोजेस” .. अर्थात आर्थिक न्याय और जीवन में गुणवत्ता हो . 1913-14 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस प्रथम विश्वयुद्ध के विरोध , शांति के लिए किया गया.
1917 में रूस में इस दिन को रोटी और कपडे के लिए मजदूर औरतो ने हड़ताल पर जाने का फैसला लिया. रुसी क्रान्ति के बाद महिलाओ को वोट देने के अधिकार मिला और ८ मार्च को महिला दिवस  मनाया जाने लगा
8 मार्च आज भी महिलाओ को उनकी क्षमता सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक बराबरी, तरक्की दिलाने व उन महिलाओ को याद करने का दिन है जिन्होंने अपने अथक संघर्षो द्वारा अपने हक्क हासिल किये और अन्य महिलाओ के लिए वे हक्क सुनिश्चित कराये.
भारत में महिलाओ ने बहुत तरक्की है इस दिन को मानाने के लिए देश के हर कोने में महिला संघठन ,मजदूर संगठन, वामपंथी पार्टिया  और उनकी महिला इकाईयों से लेकर सरकार,एनजीओ और स्वायत महिला संघठनो द्वार ये दिन धूमधाम से पूरी उर्जा के साथ मनाया जाता है. इस दिन महिला दिवस मानाने के लिए गरीब दलित आदिवासी व अल्पसंख्यक महिलाए भी आती है है या यू कहे लायी जाती है. महिला मजदूरोके संघर्ष  से शुरू हुआ ये दिन आज मध्यम वर्गीय महिलाओ के नेतृत्व व आकांक्षाओ का  दिन बनता जा रहा है जिसका केन्द्रीय मुद्दा स्त्री की योनिकता, साम्प्रदायिकता, अंतराष्ट्रीय बहनापा, सेक्स वर्क से शुरू हो कर घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर यौनाचार और स्त्रियों की आजादी को चिन्हित करती है जो पितृसत्ता के विनाश तक सिमित प्रतीत होती है जबकि गरीब महिलाओ के मुद्दे है गरीबी, आवास और उससे सम्बन्धित समस्याए जैसे पीने व नहाने- शोचालय  का पानी, सस्ती बिजली की सुविधा, पुनर्वास बस्तियों में पक्की सड़के, नालियों का निकास, सीवर लाइन तथा बच्चो की सस्ती और सरल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा. घरेलू हिंसा मूल कारण नशाखोरी और नशे की वजह बेरोजगारी , निराशा प्रतिकूल वातावरण और मुनाफाखोरी भ्रस्ताचार में व्याप्त है. पुलिस प्रशासन का इन वर्गों के प्रति उपेक्षा- पूर्वाग्रह, जातीय पूर्वाग्रह . श्रमाधारित पुश्तेनी धंधो में आर्थिक दमन उत्पीड़न, दलित महिलाओ  व् बालिकाओ के साथ बलात्कार उन्हें डायन कह कर अपमानित करना, मलमूत्र पिला कर नंगा करके घुमाना, सर पर मैला ढोने या अस्वच्छ कार्यो को करने के लिए मजबूर होने से ले कर या उन्हें अशिक्षा और संसाधनों के आभाव में सैक्स वर्क में तब्दीलन होने   जैसे कृत्यों को  महिला आंदोलनों में गंभीरता से न केवल  पहचानने जाने की आवश्यकता है बल्कि इसे  चेतावनी के रूप में लिए जाने की जरुरत है तभी हम महिला आन्दोलन को समग्र व् विश्वव्यापी संघर्षो व्  एकता के नजरिये से देखने का मान कर सकेंगे   



रजनी तिलक – लेखिका पत्रकार एक्टिविस्ट और राष्ट्रिय दलित महिला आन्दोलन की संयोजक 

उर्मिला पवार की आत्मकथा आयदान पर नाटक मंचन

मित्रो खुश खबरी है कि हमारी मित्र उर्मिला पवार की आत्मकथा पर कल पुन में नाटक मंचन होगा . जिसका अभिनय और निर्देशन, सुषमा देशपांडे ने किया .पूना में रहने वाले  मित्र नाटक देखने  जरुर  जाए . 

Wednesday, March 11, 2015

समकालीन भारतीय दलित महिला लेखन का तीसरा खंड

समकालीन भारतीय दलित महिला लेखन का तीसरा खंड कथा साहित्य और दलित स्त्रीवाद पर केन्द्रित है . यह खंड भी भारतीय भाषाओ पर है. इस बार दलित महिला साहित्यकारों के आलावा पुरुष दलित साहित्यकारों की रचनाए भी शामिल की जा रही है
कथा साहित्य में दलित महिलाओ की कहानिया, आत्मकथा.. संस्मरण और कहानी संग्रहों आलोचनात्मक विश्लेषणात्मक खंड लाने का प्रयास है
हिंदी मराठी पर सामग्री मिल जाती है परन्तु दक्षिण भारत से रचनाओ का अनुवाद व सामग्री मिलने में बहुत मुस्किल होती है. वह भी दलित साहित्यकारों की कलम से .
अनुरोध है कि इस मिशनरी काम में जो साथी स्वेच्छा से जुड़ना चाहे .. जरुर सम्पर्क करे ........rdmaindia@gmail.com
jai savitriphule

Monday, March 9, 2015

Internation Women Day

आज अंतर राष्ट्रिय महिला दिवस है . विश्व में महिलाओ के अधिकारों पर संघर्ष करने वाली जुझारू महिलाए और उनके समर्थको द्वारा महिला दिवस मनाया जा रहा है. क्या हम जानते है ये दिन क्या मनाया जाता है और किसने की इसकी शुरुआत ? जी हां इसकी शुरुआत की मजदुर महिलाओ ने कम वेतन और काम के ज्यादा घंटो को ले कर .. कार्यस्थल पर उनके साथ भेदभाव को बरते जाने के विरोध में . आप हैरान होने ये देख कर आज भी महिलाओ मजदूरो की स्थिति कोई अच्छी नहीं . हमारे देश में 1929 में प्रसूति विधेयक को ले कर बाबा साहेब ने जोरदार बहस की थी आज केन्द्रीय सरकार महिलाओ को प्रसूति अवकाश , के साथ अबोर्शन लीव , २ वर्ष की चाइल्ड केयर लीव पूरी तनख्वाह के साथ देती है वंहा असंघटित महिलो के के लिए कोई सुरक्षा नहीं क्या उनके बच्चे देश की विरासत नहीं ?
आज के दिन के इतिहास की और मुड कर देखे तो पता चलेगा 1857 में न्ययार्क की सडको पर महिला हजारो महिला मजदूरो ने कम वेतन और ज्यादा घंटे व काम के खिलाफ प्रदर्शन किया. ८ मार्च क 1908 को न्यूयार्क में महिलाओ के वोट के अधकार के लिए य दिन मनाया गया . 1908 में ही गारमेंट महिला मजदूरो ने बाल श्रम और महिलाओ की खराब स्थिति के खिलाफ संघर्ष किया , पुलिस की गोली चलने पर परचम लाल हो गया .न्यूयार्क में एक फक्ट्री में आग लगने से 1911 में 145 महिला मजदुर मर गयी ८० हजार मजदूरो ने शवयात्रा में जा कर मालिको का विरोध किया. सन 1912 में १४ हजार कपडा मजदुर हड़ताल पर गयी जिन्होंने अपनी जिन्दगी को महत्वपूर्ण मानते हुए आर्थिक सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण जिन्दगी की मांग की . 1913 -14 रुसी महिलो ने विश्व शांति बहल करने हेतु युद्ध का विरोध किया ..
इस दिन की स्थापना मजदुर नेत्री क्लारा झेटकिन के प्रस्ताव पर 1910 में समाजवादी महिलाओ के अंतर्राष्ट्रीय समेलन में 17 देशो की प्रतिभागी 100 डेलिगेट के समर्थन से हुआ. जो हर तरह के दमन जारशाही, पूंजीवादी दमन के खिलाफ थी ..
हमारे देश में भी ये दिन मनाया जाता रहा है .. परन्तु गरीब दलित आदिवासी महिलाओ के मुद्दे लगातार हशिय पर है.. मजदोर दलित आदिवासी और अल्पसंख्यक व ह्गुम्न्तो जातियों की बहनों को अपने अधिकारों के लिए फिर से बाहर निकलना होगा ..... रजनी तिलक

Saturday, March 7, 2015

 महिला दिवस ८ मार्च २०१५ .. के उपलक्ष में हम जाएँगे 7 मार्च को देवली, स्थल मंदिर जंहा दक्षिण दिल्ली की बहने मनाएगी महिला दिवस .. नारे लगेंगी और गाएंगी गीत .. छात्र -छात्राए करेंगी नाटक ..बच्चे उड़ेंगे गुब्बारे. एक्टिविस्ट देंगी भाषण .
8 मार्च २०१५ को दिल्ली सब महिला संघठन जाएंगी रजीव चोक मेट्रो गेट नो. 7 मिल कर गाएंगी .. बाटेंगी पर्चे ..और सम्बोधित करेंगी समाज को .. सुधरो .सुधरो ..
१० मार्च को सावित्री फुले को याद करके जाएँगे सोनीपत . ग्रामीण भारत की महिलाओ से होगी बाते .. वे करेंगी अपने जीवन की बाते .. बतियएँगी ..सब बहना .. क्यों है हरियाना में माहि;ला अत्यचार और इज्जत के नाम पर मोत का फरमान
आओगे हमारे साथ .. चलोगे हिंसा के खिलाफ ?
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