हमारे देश में महिलाओ का अनुपात पुरुषो की अपेक्षा बहुत कम है. महिलाए
न केवल सख्या में कम है बल्कि मुख्य धारा
में भी उनकी उपस्थति कम है. कारण है अशिक्षा,परिवारो में सामन्ती परिवेश, मादा भ्रूणहत्या या नवजात बालिका की हत्या, बाल
विवाह, कन्यादान , दहेज़ प्रथा -दहेज़ न दिये जाने पर उनकी हत्या, घरेलु हिंसा दमन ,
उनेह दबा कर रखना , उनकी जिन्दगी के फैसलों पर दबाब बनाये रखना जैसे कृत्य उनके आत्मविश्वास
का क्षरण करके उनेह दीन हीन बनाये रखने का क्रम
जारी रखते है.हमारे देश का संविधान सबको
समानता का अधिकार देता है फिर भी सामाजिक सच्चाई या है कि समाज में आज भी महिलाओ और बालिकाओ के साथ लिंग भेदभाव निरंतर
जारी है.
8 मार्च दुनियाभर में महिलाओ के अधिकार, संघर्ष और उपलब्धियों के
सरोकारों को लक्षित करते हुए मनाया जाता रहा है . अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस महिलाओ
ने अपनी पहल पर मानना शुरु किया क्योंकि महिला मजदरो के कठोर एवं अमानवीय श्रम के
खिलाफ संघर्ष, युद्ध विरोधी मोर्चो के खिलाफ शान्ति हेतु और महिलाओ को उनके वोट के अधिकार ने उनेह प्रेरित व आंदोलित किया.
माना जाता है कि लिसिसटाटा नाम की महिला ने प्राचीन ग्रीस में फ्रांस
क्रांति के दुरन युद्ध समाप्ति की मांग के
साथ आन्दोलन शुरू किया . इन्ही कदमो का अनुसरण करते हुए फारसी महिलाओ ने मोर्चा
निकल कर युद्ध के कारण महिलाओ पर बढ़ते
अत्याचारों को रोकने का आह्वान किया. 1857में अमेरिका में न्यूयार्क की हजारो
महिला मजदूर कम वेतन,लम्बी डयूटी व उत्पीडन के खिलाफ हड़ताल के लिए निकली. . 8
मार्च 1908न्यूयार्क में वोट के अधिकार हेतु सडको पर उतरी. गारमेंट महिला मजदूरो
ने न्यूयार्क में 1908 में कार्यस्थल पर सही हालातो के लिए संघर्ष झेला. पुलिस की
गोलियों से बहे लहू ने परचम को लाल कर दिया.
शुरुआती दिनों में 28 फरवरी 1909
अमेरिका की सोशलस्ट पार्टी के आह्वान पर मजदुर औरतो के पूंजीवादी दमन के विरुद्ध महिला
दिवस फरवरी के आखिरी रविवार को मनाया जाने लगा
इस दिन की स्थपाना कम्युनिस्ट नेत्री क्लारा झेत्किन के प्रस्ताव पर 8 मार्च 1910 में
सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेहेगन में जंहा 17 देशो की 100 प्रतिनिधि शामिल थी की
सहमती मिली जिसे विश्वस्तरीय मानता मिली इसका उदेश्य था महिलाओ को वोट देना का
अधिकार प्राप्त कराना. 19 मार्च 1911को यूरोप में आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी व
स्विटजरलैंड में लाखो महिलाओ ने घर से बार निकल कर महिलाओ के काम के अधिकार,
व्यवसायिक प्रशिक्षण, मजदुर महिलाओ के साथ भेदभाव की समाप्ति, वोट देने का अधिकार
और राजनीतिक भागीदारी का हक्क माँगा.
1911 न्यूयार्क में एक फैक्ट्री में आग लगने से मजदुर औरते मालिक की
संगदिली के कारण तंग दरवाजे जो सख्ती से
बंद थे ताकि मजदुर औरते अंदर कैद रहे, की
वजह से वे निकल नहीं पाई अतः 145 गारमेंट
मजदुर औरते झुलस कर मर गयी. इस कृत्य के विरोध में इन महिलाओ के शवो के साथ 80
हजार से ज्यादा मजदूरो ने श्मशानघाट तक यात्रा में शामिल हो कर अपना विरोध जताया
8 मार्च 1912, 14 हजार से ज्यादा मजदुर औरते हड़ताल पर गयी जिन्होंने
काम की जगह अमानवीय वातावरण का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि काम करते करते मर
जाने से अच्छा है भूखे मर जाए उनके इस अदम्य साहस से एक मशहूर सुंदर गीत बना और गए
जाने लगा “ब्रेड एंड रोजेस” .. अर्थात आर्थिक न्याय और जीवन में गुणवत्ता हो .
1913-14 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस प्रथम विश्वयुद्ध के विरोध , शांति के लिए
किया गया.
1917 में रूस में इस दिन को रोटी और कपडे के लिए मजदूर औरतो ने हड़ताल
पर जाने का फैसला लिया. रुसी क्रान्ति के बाद महिलाओ को वोट देने के अधिकार मिला
और ८ मार्च को महिला दिवस मनाया जाने लगा
8 मार्च आज भी महिलाओ को उनकी क्षमता सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक
बराबरी, तरक्की दिलाने व उन महिलाओ को याद करने का दिन है जिन्होंने अपने अथक
संघर्षो द्वारा अपने हक्क हासिल किये और अन्य महिलाओ के लिए वे हक्क सुनिश्चित
कराये.
भारत में महिलाओ ने बहुत तरक्की है इस दिन को मानाने के लिए देश के हर
कोने में महिला संघठन ,मजदूर संगठन, वामपंथी पार्टिया और उनकी महिला इकाईयों से लेकर सरकार,एनजीओ और
स्वायत महिला संघठनो द्वार ये दिन धूमधाम से पूरी उर्जा के साथ मनाया जाता है. इस
दिन महिला दिवस मानाने के लिए गरीब दलित आदिवासी व अल्पसंख्यक महिलाए भी आती है है
या यू कहे लायी जाती है. महिला मजदूरोके संघर्ष
से शुरू हुआ ये दिन आज मध्यम वर्गीय महिलाओ के नेतृत्व व आकांक्षाओ का दिन बनता जा रहा है जिसका केन्द्रीय मुद्दा
स्त्री की योनिकता, साम्प्रदायिकता, अंतराष्ट्रीय बहनापा, सेक्स वर्क से शुरू हो
कर घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर यौनाचार और स्त्रियों की आजादी को चिन्हित करती है
जो पितृसत्ता के विनाश तक सिमित प्रतीत होती है जबकि गरीब महिलाओ के मुद्दे है
गरीबी, आवास और उससे सम्बन्धित समस्याए जैसे पीने व नहाने- शोचालय का पानी, सस्ती बिजली की सुविधा, पुनर्वास
बस्तियों में पक्की सड़के, नालियों का निकास, सीवर लाइन तथा बच्चो की सस्ती और सरल
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा. घरेलू हिंसा मूल कारण नशाखोरी और नशे की वजह बेरोजगारी ,
निराशा प्रतिकूल वातावरण और मुनाफाखोरी भ्रस्ताचार में व्याप्त है. पुलिस प्रशासन
का इन वर्गों के प्रति उपेक्षा- पूर्वाग्रह, जातीय पूर्वाग्रह . श्रमाधारित
पुश्तेनी धंधो में आर्थिक दमन उत्पीड़न, दलित महिलाओ व् बालिकाओ के साथ बलात्कार उन्हें डायन कह कर
अपमानित करना, मलमूत्र पिला कर नंगा करके घुमाना, सर पर मैला ढोने या अस्वच्छ
कार्यो को करने के लिए मजबूर होने से ले कर या उन्हें अशिक्षा और संसाधनों के आभाव
में सैक्स वर्क में तब्दीलन होने जैसे
कृत्यों को महिला आंदोलनों में गंभीरता से
न केवल पहचानने जाने की आवश्यकता है बल्कि
इसे चेतावनी के रूप में लिए जाने की जरुरत
है तभी हम महिला आन्दोलन को समग्र व् विश्वव्यापी संघर्षो व् एकता के नजरिये से देखने का मान कर सकेंगे
रजनी तिलक – लेखिका पत्रकार एक्टिविस्ट और राष्ट्रिय दलित महिला
आन्दोलन की संयोजक