Monday, June 22, 2015

योग और हम




पुरे देश में योग के साथ कसरत पूरी हुई . देश के प्रधानमंत्री ने राजपथ पर योग का भारत की अगुआई में पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस बनाया . यह दिवस १९२ देशो के २५१ देशो में बड़े उत्साह  से मनाया गया. .दिल्ली  देश की राजधानी दिल्ली  के राजपथ पर ३५ हजार लोगो के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी  अपने मंत्रीमंडल और अधिकारियो समेत  स्वम् योग करने और कराने के लिए उपस्थित हुए थे. यह कोई नयी बात तो नहीं परन्तु योगा पर ध्यान केन्द्रित हुआ है यह विशेष बात जरुर है

मुझे याद है कि गोल डाकखाने के पास मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ योगा है जन्हा हम कालेज के समय योग सीखने जाते थे . मै  तो ज्यादा दिन नहीं जा पाई मेरी  सहेलिया जरुर नियमित रूप से योगा सिखने जाती थी.  ये इंस्टिट्यूट योग टीचर का 40 दिन से तीन महीने का कोर्स कराता था  उसके बाद योग अध्यापक की नोकरी भी मिल जाती थी .मेरी एक मित्र नीलम जो पहाड़ी मूल थी, सरकारी नोकरी में हम दोनों एक साथ आये थे . उसने नोकरी से छुट्टी ले कर  योग टीचर कोर्से किया था. तरह तरह के आसन के बारे में वो हमें बताती थी . विशेषटी कुंजल के बारे में बताती थी की सुबह उठ कर कुंजल करने से हमारे पेट के आसपास  अन्दर की गंदगी निकल जाती है और गला भी साफ रहता है . मैंने भी उससे कुंजल करना सीखा था.

पिछले वर्षो वाट रोग और अस्थमा होने के कारन मैंने सोचा था  कि योग पूरा सीखा जाए . जब मै मोररार्जी संसथान में गयी तो पता चला कि सुबह ६-९ या ३-६ के  सत्र है कुछ फीस भी थी . समय विकल्प न होने की वजह से सोचा घर पर ही कुछ टिप्स ले लू .  एक मित्र ने फोन न. दिया की आप घर सीख ले .फ़ोन न के कर बात करने पर पता चला  कि घर आ कर  सिखाने के लिए 500 एक घंटा और कम से कम २० दिन सीखना होगा . योग सीखना इतना महंगा हो गया  . उस समय मुझे महसूस हुआ की योग अब मध्यम वर्ग का फैशन हो गया है क्योंकि टीवी पर डांस के साथ योगा  न्यूस चैनल का विशेष कार्यक्रम होने लगे. मिडल क्लास कालोनियों में योग का प्रचलन शुरू हो गया था. योग  सुबह सुबह महिलाओ का अलग ग्रुप  और पुरुषो का अलग ग्रुप देखने को मिलता.   मेडिटेशन करने की ललक भी मिडिल क्लास में देखने को बहुत मिलती है

अब सवाल योग और मेडिटेशन के इतिहास और उनके स्त्रोत पर जाता है. हमारे भाई जो अम्बेडकरवादी है और जो बुद्धिस्ट है कह रहे है कि योग हमारी विरासत है . बुद्ध ने जब घर छोडा तब सबसे पहले उन्होंने  योगविद्या सीखी और वो उसमे सिध्हस्त हुए... अंत में मेडिटेशन  में . बुद्धा  द्वारा तन और मन को समझने की विद्या के साथ साथ माध्यम मार्ग और सभी तरह के पावर को समझने की , दुखो को दूर करने के उपदेश हमारे सम्मुख है फिर भी हमारे बोध विहारों में इस तरह  के अभ्यास क्यों नहीं हो पाते . जो काम हमें अपने प्रयास से करने चाहिए .. न कर पाने की स्थिति में  हमर खिन्न होना स्वाभाविक है . योग गरीब आदमी के लिए उसके परिश्रम में मौजूद है .. उसकी सामूहिकता में सहजता और मित्रता है जो उसे सहज रखती और खान पान में दुरुस्त . योग की जरुरत आज आराम परस्त , माध्यम वर्ग को है जो अनियमित  जीवनचर्या  और खान पान और दिखावे की जिन्दगी का आदि हो रहा है .. उसे जरूरत है.. वह सुबह जल्दी उठे .. कुछ काम न करे तो योग तो करे जिससे उसका शरीर स्वस्थ रह सके  

Saturday, May 9, 2015

नोटंकी कलाकार और उनका भविष्य

 नोटंकी मलिका  गुलाब बाई का नाम तो सबने सुना होगा. जीवन के अंत में उनेह पद्मश्री अवार्ड  मिला . बचपन से बुढ़ापे तक ता  जिंदगीभर वे घुंघरु के साथ दोस्ती में बंधी रही .. बेडिया समुदाय प्राय नाच और गाने के व्यवसाय में अपनी रोजी रोटी की जरुरत भर पूरी करता है .परिवार की बड़ी लड़की को नाच गाना सिखा कर उसे इस धंधे में प्रेरित किया जाता है  की वो नोटंकी में नाचते गाते  हुए हस हंस कर बचपन से जवानी ओए जवानी से बुढ़ापे तक अपने परिवार का पेट भरे और उनेह सुरक्षा दिलाए .
दलित महिला जो देवदासी बन कर अपने परिवार की मर्यादा और जीवन आधार बन जाती है उसे जीवन में कभी अपने लिए मान सम्मान और सुरक्षा और प्रेम नहीं मिलता ठीक इसी तरह बेदिनी और कोल्हाटी जाति की औरत को भी प्रेम विश्वास और सुरक्षा के साथ साथ मान सम्मान  नहीं मिल पता. न ही उसे सभी समाज में एक औरत की गरिमा प्राप्त हो सकती है.
कहने को तो ये कलाकार है परन्तु इनकी कला को अश्लील चश्मे के साथ देखा जाता है नोटंकी एक विधा है जो a अमिर लोगो  के मनोरंजन के लिए पली पोसी गयी . रात के अँधेरे में जुगनू की तरह थिरकते कलाकारों के कला का श्रम  बहुत ही कम आँका गया.  कम पढ़े परन्तु गजब का का हुनर और उनका अभिनय किसी फिल्मी अदाकारों से ऊपर ही होगा.
आज कोल्हाटी जाति या बेडिया जाति की बालिकाए रात्रि नाट्य से बहार  हो कर आइटम सांग  या  उस पर नाच करती है या  बड़े होटल में कैबरे डांस  करती है बार गर्ल के रूप में पहचानी जाती है . कई बार ये धंधे उनेह सैक्स वर्क की और धकेल कर ले जाते है . मर्दों के संसर्ग से पैदा हुए बच्चो को वे अपनी जिम्मेदारी पर स्वम् पालती है और उनेह अपने बच्चो के पिता का नाम नहीं मिलता .वे पत्नी का ओहदा न प् कर रखैल या उप-पत्नी कहलाती है
नोटंकी  स्टाइल को संगीत नाटक अकादमी या अन्य कला केंद्र इस कला  को सहेज कर रखने के लिए बहुत प्रयास तो करते है लेकिन इसमें पारंगत पारम्परिक  कालकारो  को वो स्थान या सम्मान नहीं देते जिसके वो  हकदार है. . कालकारो के लिए संस्कृति मंत्रालय आवास , पेंशन मुहैय्या कराई जाती है लेकिन बेडिया समुदाय के कलाकारों को एस तरह की सुविधा नहीं मिलती अगर कुछ प्रावधान है भी तो शर्ते पूरी कर्ण की उनकी क्षमता नहीं है.. मसलन उनेह मात्र 4000  प्रति माह की पेंशन के लिए अनेक कागजी कार्यवाही करनी पड़ती जिसमे उनेह काफी तकलीफ से गुजरना पड़ता है और प्रशासनिक अडचनों और फटकारो को झेलना पड़ता है
नोटंकी कलाकारों के बच्चे मुख्यधरा में नही मिल पाते . पिता का नाम न पाने के कारन आत्महीनता से गुजरते है अच्छी शिक्षा और वातवरण के आभाव में उनका समुचित विकास अवरुद्ध हो जाता है .  सरकार , सभी समाज और दलित आंदोलनों के साथ साथ महिला आंदोलनों का नैतिक दायित्व बनता है कि इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए जरुरी है उनको समुचित शिक्षा और आगे बदने के वक्ल्पिक अवसर मिले . जीवन यापन लायक पेंशन मिले और पेंशन की उम्र 60 वर्ष से घटा कर ४० वर्ष कर देनी चाहिए ताकि सही समय पर वे सम्मानजनक जिन्दगी जीने की तरफ बाद सके 

Thursday, May 7, 2015

ताड़का ब्लाग क्यों

मैंने अपने ब्लाग का नाम बदल कर ताड़का रख लिया है . ताड़का का नाम सुन कर आप हैरान तो नहीं हो गये . रामलीला में एक औरत जो विश्वामित्र को यज्ञ करने से रोकती है और विश्वामित्र क्रोधित हो कर राम के पास जाते है और उसे उस औरत को दंड देने की गुहार लगाते है.
कोण है ये औरत ? ये औरत है  भूमिपूजक .. जल जंगल जमीन की मालिक जो अपने परिश्रम से अनाज उगती है . और अपने श्रम से खाद्यान्न भरती है ऐसे में कोई व्यक्ति पूजा के नाम पर सब अनाज धूनी में झोक क्र जला दे तो उसे गुस्सा आएगा ही न?
ताड़का एक आदिवासी कबीलाई नेत्री थी जो अपने काबिले की भूमि आनाज  की सुरक्षा करने में समर्थ थी.
ताड़का नाम से उस औरत की छवि उभर कर आती है जो लडती है , जो ताकतवर है जो अपने फैसले खुद लेती है और अपने राज्य की अपनी भूमि की रक्षा करती है
आज से मै अपने  auther ब्लॉग को ताड़का ब्लाग  में बदल रही हु ताकि मेहनती औरत की छवि को मजबूत किया जा सके .

ताड़का ब्लाग में आपका स्वागत है .. आपकी क्या रे है ?

Monday, April 20, 2015

डॉ अम्बेडकर को हम महिलाओ का सलाम

14 अप्रैल पूरे देश में बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है .दक्षिण भारत से लेकर उत्तेर भारत तक और पश्चिम भारत से पूर्वी भारत में डॉ आंबेडकर जयंती की रोनक देखते ही बनती है . डॉ अम्बेडकर के बारे में बात करे तो अक्सर बकात दलित वर्गों की आ जाती है यंहा तक की बात आरक्षण पर आ कर रुक जाती है आज़ाद भारत में   डॉ अम्बेडकर को  दलितों का मसीहा कहा जाता है .जबकि डॉ अम्बेडकर के समस्त कार्यो का मूल्यांकन  करे तो हम पाएंगे कि वे एक कुशल अर्थशास्त्री थे , समाजवैज्ञानिक थे, कानून विशेषज्ञ  थे मजदुर नेता थे , पत्रकारिता में प्रखर विद्वान् और महिलाओ के अधिकार के चैम्पियन थे
डॉ अम्बेडकर एक प्रबुद्ध भारत का सपना देखते थे अतः उन्होंने सविधान के पहले पन्ने पर यानि की प्रस्तावना में सभी जातियों के स्त्री पुरुषो को बराबरी दी . स्त्री-पुरुष असमानता व छुआछूत की समाप्ति करके समानता की गारंटी दी. गरीब आमिर , मजदुर मालिक के बीच सामाजिक समानता का सूत्रपात किया . वर्ण वर्ग जाति लिंग भेद रहित  सभी को वोट देने का अधिकार दिया.
डॉ अम्बेडकर ने महिलाओ को समानता दिलाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका  अदा की . युनिफाम सिविल कोड  से ले कर हिन्दू कोड बिल  को लाने  में उन्होंने पुरजोर लगाया कि  महिलाओ को समाज में बराबरी का हक्क मिले उन्हें पति और पिता की सम्पति में भाइयो के साथ सम्पति का हक्क मिले . पति की सम्पति में  वैवाहिक सम्पति  में हक्क मिले जिससे पति और ससुराल ली गुलामी से वो मुक्त हो कर अपना जीवन स्वाभिमान से जी सके
हिन्दू कोड बिल ने महिलाओ के भरण पोषण,  तलाक लेना न देने के साथ साथ पति की हैसियत के हिसाब से खर्चे का अधिकार दिया . भारतीय सविधान  ने  औरत को दत्तक पुत्र पुत्री गोद लेने व अपनी सम्पति संरक्षण का अधिकार दिया. अपनी मर्जी से जीने ओर  अपनी आजादी से आने जाने का हक्क दिया.  महिला कर्मचारियो को  प्रसूति अवकाश और मजदुर औरतो को पुरुष मजदूरो के समक्ष  न्यनतम वेतन व  समान वेतन समान घंटे काम का अधिकार मिला. इतने सब अधिकार महिलाओ को बिना लड़े .. बिना संघर्ष किये  आराम से मिल गये

डॉ अम्बेडकर की जयंती को दलित महिलाए एक महिला के रूप में डॉ अम्बेडकर के महिलाओ के प्रति योगदान को याद करती है . वे डॉ अम्बेडकर की जीवनी पढ़ कर उनके संघर्षो के साथ स्वम् को जुड़ा देखती है. और दलित स्वम् को एक इंसान के  रूप में अपने मानवीय हक्को को पाने व भोगने के लिए डॉ अम्बेडकर के योगदान को नहीं भूलते .
महिलाओं के अधिकारों के चैम्पियन डॉ अम्बेडकर को याद न करने वाली महिलाओ के बारे में क्या कहा जाये ?
उनके  शोध ..विमर्श और लेखन में डॉ अम्बेडकर और उनकी विचारधारा कंही दूर तक नहीं  आते तभी तो नयी पीढिया अब सवाल करने लगी है की महिला आन्दोलन डॉ आंबेडकर को क्यों नहीं  जनता?  

Saturday, April 18, 2015

कोशल्या बैसंत्री एक लेखिका – एक एक्टिविस्ट

लेखिका कौशल्या बैसेंत्री डॉ अम्बेडकर के छात्र आन्दोलन की सचिव व् युवा नेत्री कौशल्या नंदेश्वर  थी . १९४२ के महिला अधिवेशन में उन्होंने सक्रिय भूमिका अदा की थी इनके माँ –पिता नागपुर की एक्सप्रेस मील में मजदूरी करते थे. पिता मशीनों में तेल डालने का  काम तो माँ इसी मील में धागा बनाने वाले विभाग में कार्यरत्त थी.  इनके माता पिता बहुत ही जीवट एवं मेहनती थे. माता-पिता को 13 सन्तान- 10 लडकिया और तीन लड़के हुए जिनमे से 6 लडकिय और एक लड़का ही जीवित बचा
कौशल्या बैसेंत्री बचपन से ही डॉ अम्बेद्गर के विचारो से प्रभावित थी. उनकी थोड़ी शिक्षा महारष्ट्र की महान सोशलवर्कर जाई बाई चोधरी के स्कूल में हुई. गरीबी और समाजकार्य से जुड़ जाने के कारन आसपास की लडकियो की अपेक्षा इनकी शादी थोड़ी सी देर से हुई. इनकी शादी कोर्ट में बिहार के युवा देवेन्द्र बैसेंत्री से हुई , देवेन्द्र बैसेंत्री भी डॉ अम्बेडकर के समय में छात्र आन्दोलन में सकीय थे. दोनों की पहचान ही आपसी शादी का आधार बनी. पति के साथ रहते हुए कुछ ही समय में आपसी मतभेद होने के कारन इन्हे काफी दिक्कते उठानी पड़ी.
कौशल्या बैसेंत्री घर के काम में न केवल दक्ष थी बल्कि वे कलात्मक प्रवृतिकी थी अत  गृहसज्जा में बहुत ही कुशल थी. पढना लिखना,  संगीत, पेंटिंग सब उनकी रूचिकर दुनिया का हिस्सा था. महिलाओ के अधिकारों को लेकर भी बहुत सम्वेदनशील थी. वे मुनिरका डी डी ए फ्लैट में रहती थी पास में ही मुनिरका गाव भी था  ठीक गाव के पीछे जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय भी था. जब भी जेएनयू में कोई प्रोग्रम होता तो उनेह बुलाया जाता था. मुनिरका गाव की महिलाओ के लिए उन्होंने कोशिश की कि वंहा सिलाई सिखाई जाए क्योंकि वो स्वम् सिलाई कढ़ाई जानती थी और इस हुनर के  साथ क्राफ्ट काम से महिला उद्यम शुरू हो सकता था. वह जल्द ही बंद हो गया परन्तु ये सब उन संगदिल पुरुषो की वजह से हुआ जो मान कर चलते है कि औरत की जिन्दगी घर की चार दिवारी के पीछे है. बैसंत्री जी ने पहल करके  भारतीय महिला जग्रिति परिषद मनाई जिसका उद्देश्य था महिला अधिकारों के साथ साथ दलित महिलाओ को मुख्यधारा के साथ जोड़ना .इस संगठन ने दलित महिलाओ के सवाल मुख्यधारा के महिला आंदोलनों के समक्ष रखे.
कौशल्या बैसेंत्री एक जागरूक नागरिक थी और लोगो को जगाने और उनकी जानकारी बदने के लिए मरठी से अनुदित करके  हिंदी में कई लेख लिख कर समाज को दिए  उन्होंनेलेखिका उर्मिला पवार की एक कहानी हिंदी में अनुवाद की जो हंस में छपी . पत्रकारिता पर शोधात्मक कार्य कर रहे डॉ श्य्राज सिंह बैचैन को मदद की . अस्पृश्यता पर लेख लिखे. मुक्ताबाई के कामो पर लेख लिखा.वह एक अच्छी सामाजिक कार्य करता थी साथ ही अच्छी इंसान भी.अपनी आत्मकथा दोहरा अभिशाप लिखा जिसमे उन्होंने दलित स्त्रियों की जिजीविषा पर रौशनी डाली
महिलाओ की प्रेरक थी. भारतीय महिला जाग्रति परिषद् में बहुतसी महिलाओ को एकत्र किया और समाज के मुद्दों को उनेह समझती व प्रतिनिधित्व देती . दलित महिलाओ के मुद्दे पर वो अनुसूचित जाति आयोग  के अध्यक्ष  रामधन से मिली, राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह जी से मिली .. उम्र बड़ने और घर में बेटे की बहु और पति से सहयोग न मिलने के कारण मजबूरन उनेह अपनी बेटी सुजाता के घर रहना पड़ा. पति द्वारा घर में जगह और खर्चे की कोताही करने पर पति पर भरण पोषण और घर में रहने की जगह के लिए केस दायर किया जिसमें उनकी बेटी  और सबसे छोटे बेटे ने मदद की. कोर्ट से खर्चा मिलने लगा पति की मृत्यु के बाद सबसे छोटा बीटा आतिश बैसेंत्री उनेह अपने साथ मद्रास ले गये. मद्रास में अपने बेटे बहु के साथ रही परन्तु धीरे धीरे उनकी सुनने की शक्ति क्षीण होती गयी और साथ ही याद रखने की क्षमता भी
जीवन के अंतिम दिनों में वो अपने सबसे छोटे बेटे आतिश जिनेह वो बाबा कहती थी के साथ रही और २४ जून 2012 में उन्होंने अपना पार्थिव शारीर छोड़ दिया.

( ये लेख  कौशल्या बैसेंत्री की आत्मकथा दोहरा अभिशाप को  शिवाजी विश्वविद्यालय , कोल्हापुर में बीए भाग ३ में लगाने के लिए प्रा गोरख बनसोडे के सवालों के जबाब ले लिए लिखा गया है)

उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक  दोहरा अभिशाप.  भूमिका  मस्तराम कपूर
प्रकाशक  परमेश्वरी प्रकाशन , प्रीत विहार डेल्ही -110 92  मूल्य 140 रूपये
ISBN 978-81-88121-98-

                                                                               .................................by Rajni Tilak

Friday, April 3, 2015

दलित साहित्यिक कार्यक्रमों में दलित लेखिकाओ का प्रतिनिधत्व

दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट फैकल्टी  22 नम्बर कमरे में  दो दिन का राष्ट्रिय संगोष्ठी में दलित समाज के आधारभूत प्रश्न : विशेष सन्दर्भ साहित्य, शिक्षा और संस्कृती , डॉ श्योराज सिंह बैचैन के संयोजन में हुआ . 30 -31 मार्च को हुए इस कार्यक्रम में काफी जाने पहचाने व्यक्ति शामिल हुए. मै आमंत्रित नहीं थी फिर भी अपनी व्यस्तता से कुछ समय निकाल कर गयी. साथ में डॉ सुशीला तान्क्भोरे  भी थी वो एक दिन पहले ही हमारे घर नागपुर से आई थी. डॉ रेखा रानी और शरण कुमार लिम्बाने जी से भी मिलना था  और सोचा बाकियों से भी मुलाक़ात हो जाएगी. उसी दिन २ बजे एक स्तर में अध्यक्षता के लिए भी जाना था अतः जल्दी जल्दी मिल कर निकल जाना था.  डॉ रेखा रानी तो नहीं आई और निम्बाने जी भी नहीं दीखे. साहित्यकार कलि चरण स्नेही ,डॉ नामदेव, मंच पर थे. दिसोदिया और अनुरागी भी नजर आई . बहुत से छात्रो ने हमे पहचान लिया था. शोध छत्रो सर हॉल भरा हुआ था.
हमने पत्रिका ली और पढ़ कर देखा तो हैरान थी .. वैसे  हैरान  होना  तो नहीं चाहिए था . कुल वक्ता अध्यक्षता करने वालो में 44 लोग थे जिनमे मात्र ३ लेखिकाए ही थी जिनमे से एक अनुपस्थित थी . डॉ श्योराज सिंह बैचैन ने इस गोष्ठी में नवोदित और वरिष्ठ लेखको को बुलाया . दलित पत्रिकाओ के सम्पादकों को भी आमंत्रित किया. लेखिकाओ को क्यों नहीं आमंत्रित किया ? क्या इसलिए डॉ धर्मवीर को बुलाया था . या इस लिए की वो आज भी लेखिकाओ की गिनती में नहीं मानते ? हालाँकि रजनी अनुरागी का भाषण देते हुए एक फोटो फेस बुक पर शेयर किया गया है तो इसका मतलब उन्होंने उसे आमन्त्रण दिया होगा परन्तु पत्रिका में उसका नाम नहीं था.
मै जो सवाल उठा रही हु क्या वो गलत सवाल है? क्यों हम  डॉ आंबेडकर को इतना गाते है?  जब  हम महिलाओ को प्रतिनिधित्व तक देना नहीं चाहते. दलित  आदिवासी अल्पसंख्यक और पिछड़े समाज में स्त्री विरोधी मानसिकता कब बदलेगी ?  /

Saturday, March 21, 2015

रजनी तिलक


रजनी तिलक,  लेखिका कवियित्री व स्त्रीमुक्ति आन्दोलन की अग्रणीय नेता है. इनका जन्म पुराणी दिल्ली में जमामस्जिद के पास कटरा रजाराम में, जाटव समाज के माँ. दुलारे लाल व् जावित्री देवी के घर में हुआ .  27 मई 1958 को हुआ . इनके पिता दुलारे लाल  टेलरिंग में पैटर्न  मास्टर थे और माँ जावित्री देवी,घर में रह कर अपने सात बच्चो का लालन पालन करने के  लिये  घर में लिफाफे बना कर घर खर्च  में मदद करती थी.
माँ के अचानक मनोरोगी हो जाने के कारण घर में  बड़े बच्चो पर उनकी देखभाल व अन्य बच्चो की देखभाल की  जिम्मेदारी आ गयी बड़े भाई  मनोहर के साथ रजनी तिलक ने अपने बहन भाइयो की देख रेख की . जिसके कारन एन दोनों की पढाई पर दुस्प्रभाव पड़ा .बड़ा भाई वामपंथी आन्दोलन में सक्रिय हुआ तो साथ साथ रजनी और अशोक भारती का भी रुझान उस तरफ झुक गया उस समय .दो भाई और दो बहने बहुत छोटी थी. कॉलेज में जाने व पदाई न  करने पर पिताजी का दब्ब था. लेकिन रजनी की जिद्द व भाई की मदद से आगे की पड़ी जरी की . आई टी आई सिलाई कटायी में कर्जन रोआ के प्रशिक्षण लिया, साथसाथ B .A की शिक्षा नॉन कालेजिएट सी ली, अंग्रेजी और हिंदी में शार्ट हैण्ड व  टाईप सीखी 
छात्र जीवन में ही दलित आन्दोलन , स्त्री मुक्ति आन्दोलन के साथ शामिल हो गयी . सहेली के साथ मिल कर महिलाओ के विरुद्ध भेदभाव  के खिलाफ संघर्ष किया . आंगनवाडी कार्यकर्त्ता व हेल्पेर्ट्स की यूनियन बने दिल्ली ४ हजार औरतो का संगठन बनाया .दलित पैंथर दिली यूनिट बना दलित अत्य्चारो का विरोध करने की  मुहिमों में स्शामिल रही  50 से ज्यादा अत्य्चारो की फैक्ट फायिन्डिंग टीम की सदस्य रही.  बामसेफ में १९७८ से १९८४ तक सक्रिय कार्यकर्त्ता रही .     
संस्थपक सदस्य अखिल भारतीय आंगनवाडी वर्कर और हेल्पर यूनियन , आह्वान थियेटर,  नेशनल फेडरेशन दलित वीमेन, नेक्दोर, वर्ल्ड डिग्निटी फोरम दलित लेखक संघ और राष्ट्रिय दलित महिला आन्दोलन 
राष्ट्रिय महिला आयोग द्वारा दो बार अनुसूचित जाति की एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया .एवं आउटस्टैंडिंग वीमेन अचीवर अवार्ड से सम्मानित किया 
इन्ह दलित महिलाओ के के मुद्दे पर अनेक बार  रास्ट्रीय टीवी चेन्नल पर आमंत्रित किया गया.पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया अभिमूक्नायक समाचार पत्र का सम्पादन किया. अनेक पुस्तके सम्पादित पुनर लेखन की . दो काव्य संग्रह,पदचाप और हवा सी बैचैन युवतिया ,- आत्मकथा शांता काम्बले, शांता दानी , बुध ने घर क्यों छोड़ा , डॉ आंबेडकर और महिलाए  , दलित मुक्ति नायिकाए समकालीन दलित महिला लेखन वोल्यूम एक और वोल्यूम दो 
दलित आदिवासी महिला संगठनों के लिए पैरवी  करके कुछ फेलोशिप जुगाड़ना . सावित्रीबाई फुले को उत्तेर भारत में परिचित करने के लिए विशेष अभियान चलाए . उनके जन्मदिन को बरतिय महिला दिवस घोषित करने का अभियान शुरू किया. 

Friday, March 13, 2015

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस


हमारे देश में महिलाओ का अनुपात पुरुषो की अपेक्षा बहुत कम है. महिलाए न केवल सख्या में कम है बल्कि  मुख्य धारा में भी उनकी उपस्थति कम है. कारण है अशिक्षा,परिवारो में सामन्ती परिवेश,  मादा भ्रूणहत्या या नवजात बालिका की हत्या, बाल विवाह, कन्यादान , दहेज़ प्रथा -दहेज़ न दिये जाने पर उनकी हत्या, घरेलु हिंसा दमन , उनेह दबा कर रखना , उनकी जिन्दगी के फैसलों पर दबाब बनाये रखना जैसे कृत्य उनके आत्मविश्वास का क्षरण करके उनेह दीन हीन बनाये रखने का क्रम  जारी रखते है.हमारे देश का संविधान सबको  समानता का अधिकार देता है फिर भी सामाजिक सच्चाई या है कि समाज में आज भी  महिलाओ और बालिकाओ के साथ लिंग भेदभाव निरंतर जारी है.
8 मार्च दुनियाभर में महिलाओ के अधिकार, संघर्ष और उपलब्धियों के सरोकारों को लक्षित करते हुए मनाया जाता रहा है . अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस महिलाओ ने अपनी पहल पर मानना शुरु किया क्योंकि महिला मजदरो के कठोर एवं अमानवीय श्रम के खिलाफ संघर्ष, युद्ध विरोधी मोर्चो के खिलाफ शान्ति हेतु और महिलाओ को उनके  वोट के अधिकार ने उनेह प्रेरित व आंदोलित किया.
माना जाता है कि लिसिसटाटा नाम की महिला ने प्राचीन ग्रीस में फ्रांस क्रांति के दुरन युद्ध समाप्ति की मांग  के साथ आन्दोलन शुरू किया . इन्ही कदमो का अनुसरण करते हुए फारसी महिलाओ ने मोर्चा निकल कर युद्ध के कारण  महिलाओ पर बढ़ते अत्याचारों को रोकने का आह्वान किया. 1857में अमेरिका में न्यूयार्क की हजारो महिला मजदूर कम वेतन,लम्बी डयूटी व उत्पीडन के खिलाफ हड़ताल के लिए निकली. . 8 मार्च 1908न्यूयार्क में वोट के अधिकार हेतु सडको पर उतरी. गारमेंट महिला मजदूरो ने न्यूयार्क में 1908 में कार्यस्थल पर सही हालातो के लिए संघर्ष झेला. पुलिस की गोलियों से बहे लहू ने परचम को लाल कर दिया.     शुरुआती दिनों में 28 फरवरी 1909 अमेरिका  की सोशलस्ट पार्टी के आह्वान पर  मजदुर औरतो के पूंजीवादी दमन के विरुद्ध महिला दिवस  फरवरी के आखिरी रविवार  को मनाया जाने लगा
इस दिन की  स्थपाना कम्युनिस्ट नेत्री  क्लारा झेत्किन के प्रस्ताव पर 8 मार्च 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेहेगन में जंहा 17 देशो की 100 प्रतिनिधि शामिल थी की सहमती मिली जिसे विश्वस्तरीय मानता मिली इसका उदेश्य था महिलाओ को वोट देना का अधिकार प्राप्त कराना. 19 मार्च 1911को यूरोप में आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी व स्विटजरलैंड में लाखो महिलाओ ने घर से बार निकल कर महिलाओ के काम के अधिकार, व्यवसायिक प्रशिक्षण, मजदुर महिलाओ के साथ भेदभाव की समाप्ति, वोट देने का अधिकार और राजनीतिक भागीदारी का हक्क माँगा.
1911 न्यूयार्क में एक फैक्ट्री में आग लगने से मजदुर औरते मालिक की संगदिली के कारण तंग दरवाजे जो  सख्ती से बंद थे ताकि मजदुर औरते अंदर कैद रहे,  की वजह से वे निकल नहीं पाई अतः  145 गारमेंट मजदुर औरते झुलस कर मर गयी. इस कृत्य के विरोध में इन महिलाओ के शवो के साथ 80 हजार से ज्यादा मजदूरो ने श्मशानघाट तक यात्रा में  शामिल हो कर अपना विरोध जताया
8 मार्च 1912, 14 हजार से ज्यादा मजदुर औरते हड़ताल पर गयी जिन्होंने काम की जगह अमानवीय वातावरण का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि काम करते करते मर जाने से अच्छा है भूखे मर जाए उनके इस अदम्य साहस से एक मशहूर सुंदर गीत बना और गए जाने लगा “ब्रेड एंड रोजेस” .. अर्थात आर्थिक न्याय और जीवन में गुणवत्ता हो . 1913-14 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस प्रथम विश्वयुद्ध के विरोध , शांति के लिए किया गया.
1917 में रूस में इस दिन को रोटी और कपडे के लिए मजदूर औरतो ने हड़ताल पर जाने का फैसला लिया. रुसी क्रान्ति के बाद महिलाओ को वोट देने के अधिकार मिला और ८ मार्च को महिला दिवस  मनाया जाने लगा
8 मार्च आज भी महिलाओ को उनकी क्षमता सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक बराबरी, तरक्की दिलाने व उन महिलाओ को याद करने का दिन है जिन्होंने अपने अथक संघर्षो द्वारा अपने हक्क हासिल किये और अन्य महिलाओ के लिए वे हक्क सुनिश्चित कराये.
भारत में महिलाओ ने बहुत तरक्की है इस दिन को मानाने के लिए देश के हर कोने में महिला संघठन ,मजदूर संगठन, वामपंथी पार्टिया  और उनकी महिला इकाईयों से लेकर सरकार,एनजीओ और स्वायत महिला संघठनो द्वार ये दिन धूमधाम से पूरी उर्जा के साथ मनाया जाता है. इस दिन महिला दिवस मानाने के लिए गरीब दलित आदिवासी व अल्पसंख्यक महिलाए भी आती है है या यू कहे लायी जाती है. महिला मजदूरोके संघर्ष  से शुरू हुआ ये दिन आज मध्यम वर्गीय महिलाओ के नेतृत्व व आकांक्षाओ का  दिन बनता जा रहा है जिसका केन्द्रीय मुद्दा स्त्री की योनिकता, साम्प्रदायिकता, अंतराष्ट्रीय बहनापा, सेक्स वर्क से शुरू हो कर घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर यौनाचार और स्त्रियों की आजादी को चिन्हित करती है जो पितृसत्ता के विनाश तक सिमित प्रतीत होती है जबकि गरीब महिलाओ के मुद्दे है गरीबी, आवास और उससे सम्बन्धित समस्याए जैसे पीने व नहाने- शोचालय  का पानी, सस्ती बिजली की सुविधा, पुनर्वास बस्तियों में पक्की सड़के, नालियों का निकास, सीवर लाइन तथा बच्चो की सस्ती और सरल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा. घरेलू हिंसा मूल कारण नशाखोरी और नशे की वजह बेरोजगारी , निराशा प्रतिकूल वातावरण और मुनाफाखोरी भ्रस्ताचार में व्याप्त है. पुलिस प्रशासन का इन वर्गों के प्रति उपेक्षा- पूर्वाग्रह, जातीय पूर्वाग्रह . श्रमाधारित पुश्तेनी धंधो में आर्थिक दमन उत्पीड़न, दलित महिलाओ  व् बालिकाओ के साथ बलात्कार उन्हें डायन कह कर अपमानित करना, मलमूत्र पिला कर नंगा करके घुमाना, सर पर मैला ढोने या अस्वच्छ कार्यो को करने के लिए मजबूर होने से ले कर या उन्हें अशिक्षा और संसाधनों के आभाव में सैक्स वर्क में तब्दीलन होने   जैसे कृत्यों को  महिला आंदोलनों में गंभीरता से न केवल  पहचानने जाने की आवश्यकता है बल्कि इसे  चेतावनी के रूप में लिए जाने की जरुरत है तभी हम महिला आन्दोलन को समग्र व् विश्वव्यापी संघर्षो व्  एकता के नजरिये से देखने का मान कर सकेंगे   



रजनी तिलक – लेखिका पत्रकार एक्टिविस्ट और राष्ट्रिय दलित महिला आन्दोलन की संयोजक 

उर्मिला पवार की आत्मकथा आयदान पर नाटक मंचन

मित्रो खुश खबरी है कि हमारी मित्र उर्मिला पवार की आत्मकथा पर कल पुन में नाटक मंचन होगा . जिसका अभिनय और निर्देशन, सुषमा देशपांडे ने किया .पूना में रहने वाले  मित्र नाटक देखने  जरुर  जाए . 

Wednesday, March 11, 2015

समकालीन भारतीय दलित महिला लेखन का तीसरा खंड

समकालीन भारतीय दलित महिला लेखन का तीसरा खंड कथा साहित्य और दलित स्त्रीवाद पर केन्द्रित है . यह खंड भी भारतीय भाषाओ पर है. इस बार दलित महिला साहित्यकारों के आलावा पुरुष दलित साहित्यकारों की रचनाए भी शामिल की जा रही है
कथा साहित्य में दलित महिलाओ की कहानिया, आत्मकथा.. संस्मरण और कहानी संग्रहों आलोचनात्मक विश्लेषणात्मक खंड लाने का प्रयास है
हिंदी मराठी पर सामग्री मिल जाती है परन्तु दक्षिण भारत से रचनाओ का अनुवाद व सामग्री मिलने में बहुत मुस्किल होती है. वह भी दलित साहित्यकारों की कलम से .
अनुरोध है कि इस मिशनरी काम में जो साथी स्वेच्छा से जुड़ना चाहे .. जरुर सम्पर्क करे ........rdmaindia@gmail.com
jai savitriphule

Monday, March 9, 2015

Internation Women Day

आज अंतर राष्ट्रिय महिला दिवस है . विश्व में महिलाओ के अधिकारों पर संघर्ष करने वाली जुझारू महिलाए और उनके समर्थको द्वारा महिला दिवस मनाया जा रहा है. क्या हम जानते है ये दिन क्या मनाया जाता है और किसने की इसकी शुरुआत ? जी हां इसकी शुरुआत की मजदुर महिलाओ ने कम वेतन और काम के ज्यादा घंटो को ले कर .. कार्यस्थल पर उनके साथ भेदभाव को बरते जाने के विरोध में . आप हैरान होने ये देख कर आज भी महिलाओ मजदूरो की स्थिति कोई अच्छी नहीं . हमारे देश में 1929 में प्रसूति विधेयक को ले कर बाबा साहेब ने जोरदार बहस की थी आज केन्द्रीय सरकार महिलाओ को प्रसूति अवकाश , के साथ अबोर्शन लीव , २ वर्ष की चाइल्ड केयर लीव पूरी तनख्वाह के साथ देती है वंहा असंघटित महिलो के के लिए कोई सुरक्षा नहीं क्या उनके बच्चे देश की विरासत नहीं ?
आज के दिन के इतिहास की और मुड कर देखे तो पता चलेगा 1857 में न्ययार्क की सडको पर महिला हजारो महिला मजदूरो ने कम वेतन और ज्यादा घंटे व काम के खिलाफ प्रदर्शन किया. ८ मार्च क 1908 को न्यूयार्क में महिलाओ के वोट के अधकार के लिए य दिन मनाया गया . 1908 में ही गारमेंट महिला मजदूरो ने बाल श्रम और महिलाओ की खराब स्थिति के खिलाफ संघर्ष किया , पुलिस की गोली चलने पर परचम लाल हो गया .न्यूयार्क में एक फक्ट्री में आग लगने से 1911 में 145 महिला मजदुर मर गयी ८० हजार मजदूरो ने शवयात्रा में जा कर मालिको का विरोध किया. सन 1912 में १४ हजार कपडा मजदुर हड़ताल पर गयी जिन्होंने अपनी जिन्दगी को महत्वपूर्ण मानते हुए आर्थिक सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण जिन्दगी की मांग की . 1913 -14 रुसी महिलो ने विश्व शांति बहल करने हेतु युद्ध का विरोध किया ..
इस दिन की स्थापना मजदुर नेत्री क्लारा झेटकिन के प्रस्ताव पर 1910 में समाजवादी महिलाओ के अंतर्राष्ट्रीय समेलन में 17 देशो की प्रतिभागी 100 डेलिगेट के समर्थन से हुआ. जो हर तरह के दमन जारशाही, पूंजीवादी दमन के खिलाफ थी ..
हमारे देश में भी ये दिन मनाया जाता रहा है .. परन्तु गरीब दलित आदिवासी महिलाओ के मुद्दे लगातार हशिय पर है.. मजदोर दलित आदिवासी और अल्पसंख्यक व ह्गुम्न्तो जातियों की बहनों को अपने अधिकारों के लिए फिर से बाहर निकलना होगा ..... रजनी तिलक

Saturday, March 7, 2015

 महिला दिवस ८ मार्च २०१५ .. के उपलक्ष में हम जाएँगे 7 मार्च को देवली, स्थल मंदिर जंहा दक्षिण दिल्ली की बहने मनाएगी महिला दिवस .. नारे लगेंगी और गाएंगी गीत .. छात्र -छात्राए करेंगी नाटक ..बच्चे उड़ेंगे गुब्बारे. एक्टिविस्ट देंगी भाषण .
8 मार्च २०१५ को दिल्ली सब महिला संघठन जाएंगी रजीव चोक मेट्रो गेट नो. 7 मिल कर गाएंगी .. बाटेंगी पर्चे ..और सम्बोधित करेंगी समाज को .. सुधरो .सुधरो ..
१० मार्च को सावित्री फुले को याद करके जाएँगे सोनीपत . ग्रामीण भारत की महिलाओ से होगी बाते .. वे करेंगी अपने जीवन की बाते .. बतियएँगी ..सब बहना .. क्यों है हरियाना में माहि;ला अत्यचार और इज्जत के नाम पर मोत का फरमान
आओगे हमारे साथ .. चलोगे हिंसा के खिलाफ ?
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